वीर स्थली का सिंह नाद
संस्मरण
1 जुलाई, 2016 को भारतीय सेना की एक महत्वपूर्ण पलटन ‘9 पैरा स्पेशल फोर्सेस’ अपना 50वाँ स्थापना दिवस बड़े उत्साह और गर्व के
साथ मना रही थी | सेना से सेवा निवृत हुए बहुत से अधिकारी भी सपरिवार इस महाकुम्भ
में भाग लेने के लिए देश- विदेश से आए हुए थे | धर्म स्थल पर सामूहिक पूजा-अर्चना,
सामूहिक बड़ा खाना, मैस में प्रीति भोज, और भी न जाने कितने कार्यक्रमों में यह तीन
दिन कैसे बीते, पता ही नहीं चला | कुछ लोग अपने कैमरे में इन मधुर स्मृतियों को
सदा के लिए कैद कर रहे थे और कुछ विडिओ रिकॉर्डिंग में | और, मैं वहाँ से अपने
मानस पटल पर जो अविस्मरणीय चित्र उकेर कर लाई उसे आपके सामने प्रस्तुत करते हुए
मुझे जिस रोमांच, गर्व, ममता, कृतज्ञता और श्रद्धा की मिलीजुली भावना ने घेर रखा
है, उसे शब्दों में बाँध पाना मेरे लिए असाध्य कार्य है |
मेरा इस पलटन के साथ
भावनात्मक सम्बन्ध है | १९६५ के भारत-पाक युद्ध के बाद ‘मेघदूत फ़ोर्स’ के नाम से
इस पलटन की स्थापना हुई थी | मैंने भी लगभग 5 दशक पहले वर्ष १९६८ में एक नई नवेली
दुल्हन के रूप में सूरमाओं के इस परिवार में अपने सैनिक जीवन का पहला कदम रखा था |
उन दिनों यह पलटन अपनी शैश्वावस्था में जम्मू नगर के डन्साल गाँव के पास एक पहाड़ी
क्षेत्र में स्थित थी | आज यह पलटन जम्मू –कश्मीर की उधमपुर छावनी में स्थित है |
इस पलटन के मुख्य कार्यालय के ठीक सामने एक छोटा
सा प्राकृतिक टीला है | वर्षों से वहाँ पर फूल आदि लगाए जाते थे | इस टीले का भूगोल
यही है कि चाहे मैस में जाओ चाहे ऑफिस, चाहे खेल के मैदान में जाओ चाहे बैरकों की
ओर, यूनिट में किसी ओर भी जाओ, आते–जाते इस टीले पर आपकी दृष्टि अवश्य पड़ेगी | इसी
चतुर्दर्शी टीले की गौरवशाली मिट्टी की गोद में स्थापित की गई हैं इस पलटन के चार
अशोक चक्र विजेता रणबाँकुरों की काँस्य मूर्तियाँ
| सिहं जैसे अप्रतिम बल के धनी यह चार शूरवीर हैं –मेजर अरुण जसरोटिया,
मेजर सुधीर वालिया, लांस नायक छत्री एवं लांस नायक मोहन गोस्वामी | कश्मीर घाटी
में आतंकवादियों के साथ लोहा लेते हुए इन चारों ने महाबलिदान की सर्वोच्च मिसाल
कायम की है | यह चार शूरवीर केवल पलटन के लिए ही नहीं पूरे भारत के लिए अखंडता,एकता,वीरता
और शौर्य की जो गाथा अपने रक्त से जिन अक्षरों में लिख कर गए हैं, उसे युगों युगों तक इतिहास के पन्नों में पढ़ते हुए
भारत वासी प्रेरित होते रहेंगे और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहेंगे |
अपने जीवन के 50
वर्षों में यह पलटन अनगिन वीर चक्र, शौर्य चक्र, कीर्तिचक्र, सेना मेडल एवं कई
अन्य वीरता के पदकों से विभूषित हुई है | इस
पलटन को बाह्य एवं आंतरिक युद्ध में अप्रतिम वीरता का प्रदर्शन करने के कारण पाँच
बार भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष ने यूनिट साइटेशन से सम्मानित किया | इसके साथ ही
कई बार अन्य मिलिट्री कमांडरों द्वारा समय समय पर इस यूनिट को वीरता के पुरस्कारों
से समानित किया गया है | हम सब के लिए यह बहुत गर्व की बात है कि इस पलटन को ‘bravest Of The Brave ‘ के
गौरवशाली सम्मान से भी विभूषित किया गया
है |
स्थापना दिवस के
महोत्सवों में मेरे लिए सब से महत्वपूर्ण एवं रोमंचाकरी पल थे जब इन चार महा
योद्धाओं की मूर्तियों पर माल्यारोपण के लिए सभी अधिकारी, जेसीओ, सैनिक एवं उनके
परिवार के सदस्य इस टीले के सामने एकत्रित हुए थे | मेरे साथ ही खड़े थे प्रथम अशोक चक्र विजेता मेजर
अरुण जसरोटिया के बड़े भाई, उनके साथ ही अपने वीर पुत्र की मूर्ति को अपलक निहार
रहे थे दूसरे अशोक चक्र विजेता मेजर सुधीर कुमार के वृद्ध पिता | तीसरे अशोक चक्र
विजेता लांस नायक छत्री के परिवार से तो कोई नहीं आ पाया था किन्तु पूरी पलटन उनके
लिए नत मस्तक हो खड़ी थी | मेरा हाथ थामें खड़ी थी चौथे अशोक चक्र विजेता लांस नायक
मोहन गोस्वामी की युवा पत्नी ‘भावना’ अपनी 8 वर्ष की बेटी ‘भूमिका’ के साथ | एक–एक
करके सभी अधिकारी इन मूर्तियों पर श्रद्धा सुमन चढ़ा रहे थे, और हम सब खड़े उन्हें अपनी मौन श्रद्धांजलि
अर्पित कर रहे थे |
माँ वैष्णो देवी की
पहाड़ी से आती हुई सुबह की हल्की-हल्की धूप अमरत्व के चिह्न इन मूर्तियों को धीमे-धीमे
सहला रही थी और उनकी शीतल-शांत परछाई छू रही थी अपने पिता को, भाई को, पत्नी को,
बच्ची को और श्रद्धा में नत खड़े असंख्य सैनिकों को | अचानक मुझे लगा कि भावना के
हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर और मजबूत होती जा रही थी | कुछ महीने पहले ही वैधव्य के
दारुण संसार में अपना अस्तित्व खोजती, दुबली पतली पहाड़ी लड़की भावना शायद एक बड़ी
बहन के हाथों में कोई ढाढस, कोई सांत्वना कोई सहारा ढूँढ रही थी | उन महा योद्धाओं
की मूर्तियों की परछाई की दिव्य उजास में मुझे आभास हुआ कि कहीं भी तो नहीं गए हैं
‘वे’ | यहीं तो हैं, धूप की गुनगुनाहट में, हवा की सुगंध में, आकाश के विस्तार में
और धरती के धैर्य में | उस समय वातावरण में अपनों के खोने के दुःख की नमी भी थी और
शौर्य की धूप की गरिमा भी |
समारोह के समापन के
बाद मैंने उस वीर स्थली की तस्वीर ली थी | दो दिन बाद हम सब इस वीरोत्सव की मधुर स्मृतियाँ
सहेजे अपने-अपने घर लौट आए | कई दिनों के बाद जब मैंने पुन: उस तस्वीर को देखा तो
मुझे लगा कि कुछ-कुछ वैसा ही मैंने कभी-कहीं पहले भी देखा है |सुधियों की पिटारी
खोली तो वर्षों पहले ली गई एक तस्वीर मेरी अँखियों के सामने खुल गई | मैं लौट गई
अपने अतीत में |
वर्ष १९६७ में मैं
जम्मू कश्मीर विश्विद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए वाद –विवाद प्रतियोगितामें
भाग लेने के लिए मैं ‘बनारस हिन्दू विश्विद्यालय’ गई थी | वहीं से कुछ मील दूर
सारनाथ में देखा था अशोक स्तम्भ, जिसके शीर्ष पर सुशोभित थे चार सिंह | उसके बाद
इन चार सिंहों का विराट रूप देखा था राजकीय मोहर पर,राजकीय चिह्न के रूप में |भारत
की एकता, अखंडता और अक्षुण्णता का सिंह नाद वर्षों से यही चार पराक्रमी- बलशाली सिंह
चहुँ दिशाओं में,सात समुद्र पार,ऊँचे से ऊँचे पर्वत शिखरों की सीमाओं को लाँघ
युगों युगों से करते आए हैं |
मन की परतों में लिखे इतिहास के पन्नों को खोला
तो याद आया कि ‘कलिंग’ के युद्ध के बाद मानव संहार से क्षुब्ध हुए महाराज अशोक ने
धर्म परिवर्तन की घटना के स्मारक के रूप में इस स्तम्भ का निर्माण करवाया था ताकि
पूरे विश्व में अहिंसा का प्रचार–प्रसार
हो सके| दोनों चित्रों को देखते हुए मेरे मन में कई प्रश्न उभरे | संसार से हिंसा
की भावना को सदा के लिए मिटाना और मानव को मानव से प्रेम का संदेश देता हुआ सारनाथ
स्तम्भ का सिंह चक्र उस समय जनहित के लिए विशेष उद्देश्य को ध्यान में रख कर जिन
मूल कारणों के निवारण के लिए बनवाया गया था वो कारण आज भी वैसे के वैसे ही मानवता
को लील रहे हैं | संसार आज भी उसी हिंसा
और संहार की अग्नि में झुलस रहा है | प्रतिदिन कई वीरों के महाबलिदान से सीमाएँ
रक्त रंजित हो रही हैं और कितनी वीर नारियों की माँग का सिन्दूर उस रक्त में बह
रहा है | प्रश्न वहीं खड़े हैं पाषाण स्तम्भ की तरह और हम समाधान ढूढ़ रहे हैं आतंक
वाद से ग्रस्त पूरे विश्व में, चारों दिशाओं में, शिखर वार्ताओं में, और न जाने
कहाँ, कब से ?
आज 9 पैरा स्पेशल फोर्सेस की वीर स्थली पर खड़े
अशोक चक्र विजेता चार महावीरों की तस्वीर सारनाथ के स्तम्भ पर अंकित सिंहों की
तस्वीर का इतिहास पुन: दोहरा रही है | अगर उस समय अहिंसा के परम धर्म के प्रसार के
लिए सिंह नाद हुआ था तो आज इन चारों वीरों की काँस्य मूर्तियाँ भी अपने रण घोष से
पूरे भारत को उद्बोधन का संदेश दे रही हैं | मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत वासी
इन पराक्रमी वीरों के स्मृति स्थल पर अपना
माथा टेक यह प्रण लेंगे कि जिस आतंकवाद को समूल मिटाने में इन वीरों ने अपने प्राण उत्सर्ग किए हैं, आज का भारत उस शत्रु से
लोहा लेते हुए उनके सिंह नाद को भूलेगा नहीं |एक बार फिर से कृतज्ञ राष्ट्र विश्व शान्ति की ज्योत प्रज्ज्वलित करके विश्व के कोने-कोने
को दैदीप्यमान करेगा |
जय हिन्द –जय हिन्द
की सेना |
शशि पाधा
‘(स्वतंत्रता दिवस के
उपलक्ष्य में’)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें