सोमवार, 26 मार्च 2018

दो रचनाएँ ' पहली किरन ' से -----


हम चले जाएँगे
  *******
हम चले जाएँगे
पर, थोड़ा सा
रह जाएँगे यहीं

भोर किरन जब
ओस कणों को छूने आएगी
मंद समीरण किसी
डाली को गले लगाएगी
जब अम्बर में पंछी की
कोई टोली मंडराएगी
हम भी होंगे
 वहीं कहीं
थोड़ा थोड़ा, यहीं कहीं  

हम चले जाएँगे पर –
बारिशों में धरती की
भीनी सुगंध
झूमती-गाती
किसी तितली की उमंग
 विरह गीत में उठती
कोई मीठी चुभन
याद दिलाएगी मेरी  
कभी –कभी
थोड़ी थोड़ी,वहीं  कहीं |

नभ के तारों से पूछ लेना
मेरा पता
स्वप्न छाया सी संग-संग
रहूँगी सदा
न देना तब यादों के
दीपक बुझा
लौ सी आ जाऊँगी कभी
थोड़ी थोड़ी,वहीं  कहीं

शशि पाधा ( पहली किरन से)


      आभास
        **
चुभती पीड़ा का आभास
है तुझे भी , मुझे भी
कुछ बुझा-बुझा अहसास
है तुझे भी और मुझे भी|

हर लम्हा टूटे रिश्तों को
हम तोड़ा जोड़ा करते हैं
इन रिसते- भरते ज़ख्मों को
यादों से भिगोया करते हैं
  रूठी चाहत का मलाल
  है तुझे भी और मुझे भी |

अँखियों के कोरों में अब तक
कुछ पल समेटे रखे हैं
यादों की घनेरी छाँव तले
कुछ गीत सजीले रखे हैं

बिखरे सपनों का अंदाज़
है तुझे भी और मुझे भी|

अनबोले बोलों में जीती
अनजानी सी कहानी है
सूनी अँखियों में बसती
तस्वीर वही पुरानी है

मौन होठों का आघात
है तुझे भी और मुझे भी|

हर शाम चारों ओर कहीं
सन्नाटे बोला करते हैं
इन जलते बुझते तारों में
अरमान हमारे पलते हैं

घुटी-घुटी  इक आस
है तुझे भी और मुझे भी |

शशि पाधा ( प्रथम संग्रह ‘ पहली किरन’ से )

  


शनिवार, 17 मार्च 2018

सिमरन कौर का पत्र --शौर्य गाथाएँ


Hello mam...

You don't know me.. I'm a final year student (B. Com Honors) from Jammu. Arvinder Sir gave me your book (shaurya gathaye) a few months back. I had stopped reading Hindi books after school. Reading your book reminded me how beautiful a language Hindi is... And the content... Mind blowing... We all love Indian Army and respect what they do....but Shaurya Gathaye gave a detailed account of their lives... The glimpses of their personal lifes were awe-inspiring... I'm an emotional person but I've never cried while reading a book.. Yours was the first book that made me cry... I recommend it to all my friends.. Army men are great.. No matter what we can never understand what they feel... But your book brings a person as close as they can in understanding their pain... Its simply awesome..... Thank you for writing such a beautiful book... 😘

सिमरन कौर 

गुरुवार, 15 मार्च 2018

मेरे काव्य संग्रह 'अनंत की ओर ' पर वरिष्ठ कवयित्री देवी नागरानी जी के स्नेहिल उद्गार ----


मित्रों, मेरे काव्य संग्रह 'अनन्त की ओर' के विषय में अपने विचार प्रस्तुत करतीं विशिष्ट साहित्यकार 'देवी नागरानी | एक बार फिर से धन्यवाद देवी जी |
मानवीय जीवन की अंतरंगता और कोमलता की अभिव्यक्त्ति-- "अनन्त की ओर"
अनंन्त की ओर उड़ते परिंदों की गति और कवि मन की सृजनात्मक उड़ान में क़लम की रवानी कुछ ऐसे शामिल हुई है कि पढ़ते हुए लगता है जैसे ज्ञान नि:शब्दता के दायरे में क़दम रख रहा हो। शब्द-शिल्प सौंदर्य को लिए हुए जम्मू नगरी के पर्वतों की गोद में पली बढ़ी रचानाकार शशि पाधा जी अब अमेरिका में निवास करते हुए उसी प्राकृतिक सौंदर्य की वादियों में अपनी सशक्त लेखनी की रौ में हमें बहा ले जाती है, जहाँ उनकी शब्दावली खुद अपना परिचय देती हुई हमसे इस क़दर गुफ़्तार करती है कि उनसे अजनबी रह पाना मुश्किल है. सुनिये और महसूस कीजिये "पाती" नामक रचना का अंश....
"
हवाओं के कागद पर लिख भेजी पाती
क्या तुमने पढ़ी ?
न था कोई अक्षर
न स्याही के रंग
थी यादों की खुशबू
पुरवा के संग---"
इस रचना की तरलता और संगीतमय आलाप इतना मुखरित है कि खामोशी भी चुप है. कोमल भावनाओं की कलियाँ शब्द तार में पिरोती हुई हमारे साथ-साथ सुगंधित खुशबू ओढ़े "अनन्त की ओर" चल रही कवयित्री शशि पाधा जो अपने सृजनात्मक संसार में कुछ इस तरह डूबकर लिखती हैं कि उसकी रवानी में पाठक खुद-ब-खुद डूबता चला जाता है । इस संग्रह के प्रवेशांक पन्नों में माननीया पूर्णिमा वर्मन जी लिखती हैं "अपनी इस निर्भय गति में वह काव्य की अनंत दिशाओं की ओर बहती जाती हैं । सूरज और चांद उनके गीतों में सुख-दुःख के रूप में चित्रित हुए हैं लेकिन सुख-दुःख के ये दिन रात उनके जीवन को रोके नहीं रोक पाते, विचलित नहीं करते, वे साक्षी रूप में उन्हें देखती हैं, वे बिना किसी झिझक और रुकावट के जीवन के अग्नि पथ पर आगे, और आगे बढती जाती हैं" । उनकी बानगी की सरलता में उनके भाव किस क़दर हमें अपनाइयत के दायरे में लेते हैं....
"
एकाकी चलती जाऊँगी !
रोकेंगी बाधाएँ फिर भी
बाँधेंगी विपदाएँ फिर भी
पंथ नया बनाऊँगी, एकाकी चलती जाऊँगी । "
विश्वासों के पंख लगा कर, वायु से वेग की शिक्षा लेकर, उल्काओं के दीप जलाकर, जीवन पर्व मनाती हुई वे जीवन की पगडंडियों पर चलने का निष्ठामय संकल्प लेकर कठिनाइयों के पर्वतों से अपना रस्ता निकाल लेती है । यहाँ मुझे कैनेडा के कवि, गज़लकार, व्यंगकार समीर लाल की पँक्त्ति याद आ रही है ---
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रंग जो पाया उसी से ज़िन्दगी भरता गया,
वक्त की पाठशाला में मैं पढ़ता गया"
सच ही तो है जीवन की पाठशाला में पढ़कर सीखे हुए पाठ को ज़िन्दगी में अपनाने का नाम ही तज़ुर्बा है । उन्हीं जिये हुए पलों के आधार पर काव्य का यह भव्य भवन खड़ा है जो शशि पाधा जी ने रचा है ।यहाँ गहन ख़ामोशी में उनके शब्दों की पदचाप सुनिए--
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शब्द सारे मौन थे तब/ मौन हृदय की भावनाएँ
नीरवता के उन पलों में नि:शब्द थीं संवेदनाएँ "
यह मस्तिष्क की अभिनव उपज के बजाय मन की शीतलता का निश्चल प्रवाह है। शब्दावली भावार्थ के गर्भ में एक सच्चाई छुपाए हुए है जो आत्मीयता का बोध कराती जाती है. । उनकी रचनाधर्मिता पग-पग पर मुखरित है । हर मोड़ पर जीवन के महाभारत से जूझते-जूझते, प्रगति की राह पर क़दम धरती, पराजय को अस्वीकार करती अपनी मज़िल की ओर बढ़ते हुए वे कहती हैं-
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सागर तीरे चलते -चलते/ जोड़ूँगी मोती और सीप
लहरों की नैया पर बैठी/ छू लूँगी उस पार का द्वीप"
निराशा की चौखट पर आशाओं के दीप जलाने वाली कवयित्री अपने वजूद के बिखराव को समेटती, एक लालसा, एक विरह को अपने सीने में दबाए अपने मन की वेदनाओं को कैसे सजाती है, महसूस करें इस बानगी में ---
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कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
बाँध पिटारी किसको भेजूँ
मन क्यों इतना बिखर गया है "
उनकी हर एक रचना शब्द के द्वार पर दस्तक है । भावनाओं का संवेग जब शब्द के साँचे में ढलता है तब सृजन का दीप जलता है, शब्द के सौन्दर्य में सत्य का उजाला प्रतीत होता है, क़लम से निकले हुए शब्द जीवंत हो उठते हैं, बोलने लगते हैं. मन से बहती काव्य सरिता, श्रंगार रस से ओत-प्रोत आँखों से उतर कर रूह में बस जाने को आतुर है ---
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नील गगन पर बिखरी धूप/ किरणें बाँधें वंदनवार
कुसुमित/शोभित आँगन बगिया/चंदन सुरभित चले बयार "
शशि जी का सुगन्ध के ताने बाने से बुना हुआ यह गीत "चंदन गंध" पढ़ते ऐसा लगता है जैसे शब्द सुमन प्रेम की तारों में पिरो कर प्रस्तुत हुए हों, ऐसे जैसे आरती का थाल सजा हो, जिसमें प्रेम की बाती हो, श्रद्धा का तेल जला हो. अपने प्रियतम की आस में आकुल-व्याकुल यौवन मदहोशी के आलम में दर्पण से मन की बात कह कर उसे अपना राज़दार बना रहा यह गीत देखिए---
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न तू जाने रीत प्रीत की, न रस्में न बंधन
न पढ़ पाए मन की भाषा, न हृदय का क्रंदन"
शशि जी को पढ़ कर उनके जीवन, चरित्र और स्भाव का हर पन्ना खुलता जाता है, जो उन्होने जिया, उसका चिंतन करने के पश्चात लिखा, जो देखा भोगा वह अनुभव बनकर उनके व्यक्तित्व का अंग बन जाता है. उसी विचार मंथन की उपज है ये शब्द सुमन की कलियाँ.............
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उलझ गई रिश्तों की डोर
बाँध न पाए बिखरे छोर
टूटा मन का ताना बाना
शब्द गए सब हार"
संवेदना के धरातल पर अलग अलग बीज अंकुरित होते हुए दिखाई पड़ते हैं. शब्दों की सरलता, भाव भीनी भाषा, सहज प्रवाह में अपनी भावनाओं को गूंथने वाली मालिन शशि पाधा जी पाठक को अपनाइयत के दायरे में ले ही लेती हैं। ऐसे में कोई कहां अजनबी रह पाता है उनकी आहट से !!
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ताल तलैया पनघट पोखर, गुपचुप बात हुई
गीतों की लड़ियों में बुनते , आधी रात हुई"
इनके काव्य सौन्दर्य - बोध को परखने के लिए भावुक पारखी हृदय की आवश्यकता है. यह वह गुनगुनाहट है जो अपने आप अंदर से निकल कर फूट पड़ती है, रास्ते के सन्नाटों में या सुबह होने से पहले की निस्पंदता में, ऐसे जैसे रात को जंगलों से गुज़रते हुए रात की खामोशी गुनगुनाती हो. प्रकृति और प्रेम से जोड़ता हुआ उनका रचनात्मक एवं कलात्मक सौन्दर्य देखिए इन पंक्त्तियों में--
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स्वर्ण पिटारी बाँध के लाई/ अंग-अंग संवारे धूप
किरणों की झांझर पहनाई, सोन परी सा सोहे रूप"
शशि पाधा की रचनाएँ ताज़ा हवा के नर्म झोंके की तरह ज़हन को छूती हुईं दिल में उतर जाती हैं प्रकृति चित्रण और प्रेम की कविताएँ चित्र को रेखाँकित करने में पूर्णता दर्शातीं हैं और अन्त:चेतना के किसी हिस्से को धीमे से स्पर्श करती है. जैसे--
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नीले अम्बर की थाली में / तारक दीप जलाता कोई
उल्काओं की फुलझड़ियों से / दिशा -दिशा सजाता कोई "
इनके रचनाओं में कर्मठ कथ्य के तेजस्वी बयान मौजूद है...
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पंख पसारे उड़ते पंछी/ दिशा-दिशा मंडराएँ
किस अनन्त को ढ़ूँढे फिरते/ धरती पर न आएँ"
शशि पाधा जी की कल-कल बहती काव्य सरिता में मानव मन एक अलौकिक आनंद से पुलकित हो उठता है । इस काव्य संग्रह की हर रचना उल्लेखनीय है पर उस देस से इस देस की पीड़ा को अभिव्यक्त्त करती उनकी यह पंक्त्तियाँ मेरे मन के प्रवाह को भी नहीं रोक पाती----
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छूटी गलिय़ाँ, छूटा देश
अन्तर्मन उदास आज"
इस अनूठे काव्य संग्रह की हर रचना मन को उकेरती है और अपनी छवि बनाती हुई मन पर अमिट छाप सक्षमता के साथ छोड़ती है । इन सुरमयी, सुगंधित रचनाओं का यह संकलन संग्रहणीय है। शशि पाधा जी को इस भाव भीनी अभिव्यक्ति के लिये मेरी दिली शुभकामनाएँ और बधाई.
देवी नागरानी