हम चले जाएँगे
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हम चले जाएँगे
पर, थोड़ा सा
रह जाएँगे यहीं
भोर किरन जब
ओस कणों को छूने
आएगी
मंद समीरण किसी
डाली को गले लगाएगी
जब अम्बर में पंछी
की
कोई टोली मंडराएगी
हम भी होंगे
वहीं कहीं
थोड़ा थोड़ा, यहीं कहीं
हम चले जाएँगे पर –
बारिशों में धरती की
भीनी सुगंध
झूमती-गाती
किसी तितली की उमंग
विरह गीत में उठती
कोई मीठी चुभन
याद दिलाएगी मेरी
कभी –कभी
थोड़ी थोड़ी,वहीं कहीं |
नभ के तारों से पूछ
लेना
मेरा पता
स्वप्न छाया सी
संग-संग
रहूँगी सदा
न देना तब यादों के
दीपक बुझा
लौ सी आ जाऊँगी कभी
थोड़ी थोड़ी,वहीं कहीं
शशि पाधा ( पहली
किरन से)
आभास
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चुभती पीड़ा का आभास
है तुझे भी , मुझे
भी
कुछ बुझा-बुझा अहसास
है तुझे भी और मुझे
भी|
हर लम्हा टूटे
रिश्तों को
हम तोड़ा जोड़ा करते
हैं
इन रिसते- भरते ज़ख्मों को
यादों से भिगोया
करते हैं
रूठी चाहत का मलाल
है तुझे भी और मुझे भी |
अँखियों के कोरों
में अब तक
कुछ पल समेटे रखे
हैं
यादों की घनेरी छाँव
तले
कुछ गीत सजीले रखे
हैं
बिखरे सपनों का
अंदाज़
है तुझे भी और मुझे
भी|
अनबोले बोलों में
जीती
अनजानी सी कहानी है
सूनी अँखियों में
बसती
तस्वीर वही पुरानी
है
मौन होठों का आघात
है तुझे भी और मुझे
भी|
हर शाम चारों ओर
कहीं
सन्नाटे बोला करते
हैं
इन जलते बुझते तारों
में
अरमान हमारे पलते
हैं
घुटी-घुटी इक आस
है तुझे भी और मुझे
भी |
शशि पाधा ( प्रथम
संग्रह ‘ पहली किरन’ से )
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