सोमवार, 23 मार्च 2020


अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों----
            शशि पाधा



सैनिक पत्नी होने के नाते मुझे लगभग तीन वर्ष फ़िरोज़पुर छावनी में रहने का अवसर मिला | वहाँ रहते हुए जो अनुभव मेरे मन मस्तिष्क में अमिट चिह्न छोड़ गए हैं उनमें से सब से अनमोल था मेरा बार बार शहीद भगत  सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित करना | जो भी मित्र, पारिवारिक सदस्य, वरिष्ठ सैनिक परिवार फ़िरोज़पुर आता, हम उन्हें इस समाधि स्थल पर अवश्य ले जाते| पंजाब राज्य में बहने वाली पांच नदियों में से सतलुज नदी के किनारे बसे हुसैनीवाला गाँव में बनी झील के किनारे समाधि बनी हुई है | इस स्थान से भारत-पाक सीमा एक किलोमीटर दूर भी नहीं है | जो भी लोग हुसैनीवाला सीमा पर भारत-पाक की परेड देखने आते हैं , वे इस महत्वपूर्ण स्माधिस्थल पर अवश्य आकर पुष्प आदि चढ़ाते हैं |
मैं  कई बार शाम को वहाँ जाकर उन्हें मौन श्रद्धांजलि देती थी | लेकिन एक दिन का अनुभव मुझे आज तक कंपा देता है | मेरे वृद्ध माता- पिता कुछ दिनों के लिए मेरे पास फिरोजपुर में रहने के लिए आए थे | उन्हें मैं एक दिन शाम के समय इस समाधिस्थल पर ले गई |जैसा कि हर बार होता था, हमारे घर में रहने वाले सहायक भैया ने हमारी गाड़ी में कुछ पुष्पहार और कुछ पुष्प रख दिए थे | मैं अपने माता पिता को लेकर समाधि स्थल पर पहुँची तो उन दोनों ने वे पुष्पहार तीनों शहीदों की प्रस्तर मूर्तियों पर चढ़ाए और हाथ जोड़ कर नमन की मुद्रा में खड़े रहे | पास ही हमारी सेना की छोटी सी पोस्ट है | उसमें धीमा-धीमा संगीत चल रहा था | गाना था – कर चले हम फिदा जानोतन साथियो , अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो | हम सब की आँखें बंद थी और हम उस अलौकिक पल में पूरी तरह डूबे थे | अचानक मैंने महसूस किया कि मेरे पिता की आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी और वो गीता के किसी मन्त्र का जाप कर रहे थे |  यह मेरे लिए अभूतपूर्व अनुभव था | मैंने अपने धीर, मितभाषी पिता को कभी रोते हुए नहीं देखा था | ऐसा क्या हुआ होगा कि वो इस समाधिस्थल पर खड़े होकर इतने विचलित हो गए |

 जब थोड़े संयत हुए तो स्वयं ही हमसे बोले, “ लगभग मेरी ही उम्र के थे शहीद  भगत सिंह | मुझे एक बार इनसे मिलने का अवसर भी मिला था | वो बहुत ही सौम्य नौजवान था | देश प्रेम की भावना उसके रोम रोम से प्रकट हो रही थी | आज इन वीरों की समाधि देख कर मैं गर्वित भी हो रहा हूँ और ग्लानि भी हो रही है कि हम देशवासी इन्हें बचा नही सके | 23 वर्ष भी उम्र होती है किसी नौजवान के जाने की ? थोड़ी देर बाद फिर हाथ जोड़ कर वे इस त्रिमूर्ति के सामने सिर झुका के खड़े रहे | और जाते समय बोले – कृतज्ञ हूँ, अभिभूत हूँ | उन्होंने वहाँ चढ़ाए फूलों में से दो फूल उठाए और अपने रूमाल में बांध कर रख लिए |

उस शाम मैं अपने माता -पिता के साथ बहुत देर तक हुसैनी वाला झील पर नौका विहार करते रहे | मेरे पिता स्वतन्त्रता संग्राम की बातें सुनाते रहे और मैं धनी होती रही | जब भी 23 मार्च का दिन आता है , मैं शहीद भगत सिंग सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धा सुमन तो अर्पित करती ही हूँ किन्तु पर्वत जैसा हौंसला रखने वाले अपने धीर  पिता के साथ बिताए इन अनमोल पलों को याद करते हुए अंदर तक भीग जाती हूँ |

शशि पाधा

23 March , 2020

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