बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

हमारी धरोहर ----बुग्दियाँ

इस तस्वीर को ध्यान से देखें| इसमें एक गुज्जर युवती ने चाँदी में जड़े बहुत से सुंदर आभूषण पहने हैं| आज भी इसी प्रकार के आभूषणों का चलन है और इन्हें आधुनिक फैशन माना जाता है| मेरे बचपन की मधुर स्मृतियों की पिटारी में एक बहुत खूबसूरत याद है  ‘बुग्दियाँ’| बोलने में जितना खूबसूरत यह शब्द है उतना ही खूबसूरत यह गहना होता था| इस तस्वीर में इस गुज्जर युवती ने एक माला पहनी है जिसमें चाँदी के सिक्कों को धागे में गूँथा हुआ है| अगर आप अन्य दूसरी मालाओं से ध्यान हटा कर केवल सिक्कों की माला को देखेंगे तो समझ जायेंगे कि मैं किस गहने की बात कर रही हूँ| आज मैं इन्हीं सिक्कों की माला के विषय में अपनी स्मृतियों को आपके साथ साझा कर रही हूँ|
२०वीं शताब्दी में डुग्गर प्रदेश की अधिकतर महिलाओं के पास सिक्कों जैसी आकृति से गूँथा एक हार अवश्य होता था और आम भाषा में इसे ‘बुग्दियाँ’ कहा जाता था| यह सिक्के सोने के होते थे जिन्हें शायद ‘गिन्नी’ भी कहा जाता था| एक मोटे काले धागे में बराबर की दूरी पर इन बुग्दियों को गूँथा जाता था| धनी महिलाओं के पास दस- बारह बुग्दियों वाला हार होता था| यह आकार में छोटी या बड़ी भी होती थीं यानी जिसके पास जितना धन हो|
हमारे परिवार में भी एक बुज़ुर्ग महिला थीं जिन्हें हम ‘बेबे’ कह कर बुलाते थे| हमारी माँ अध्यापिका थीं अत: हमारा बचपन अधिकतर ‘बेबे’ की गोद में ही व्यतीत हुआ था| मैंने अपने बचपन में उनके पास यह गहना देखा था| कभी भी अगर उनके पास कुछ ज़रूरत से अधिक पैसे होते तो वो मेरे पिताजी से कह कर अपनी बुग्दियों की माला में एक और बुग्दी जोड़ने के लिए सुनारों के पास भेजती थीं| उनकी बुग्दियों का आकार पुराने ‘नये पैसे’ जितना होता था| सोने के तोल के हिसाब से ही इन्हें बड़ा या छोटा बनाया जाता था| उन दिनों सोना भी तो –तोला , माशा , रत्तियों के हिसाब से तोला जाता था|
मेरी बचपन की स्मृतियों में एक मीठी याद यह भी है कि जब भी मैं ज़िद्द करती तो अपनी प्यारी ‘बेबे’ से बुग्दियाँ माँगती थी कि मुझे उनके साथ खेलना है| हम ‘बेबे’ को तंग भी करते थे कि अपनी बुग्दियों को किसको देकर जाएँगी| वो हँसकर कभी भी हम भाई बहनों का नाम ले लेती थी| मैंने इस प्रकार की माला सुनारों की दुकानों में कुछ वर्ष पहले तक तो देखी हैं लेकिन अब दिखाई नहीं देती|
मैं जब भी आँख बंद कर के अपने बचपन में लौटती हूँ तो मुझे बेबे की वो बुग्दियाँ बहुत याद आती हैं| मैं इस अनमोल गहने को डुग्गर संस्कृति के साथ ही जोडती हूँ|
खेद है कि मेरे पास सोने में जड़ी बुग्दियों की माला की कोई तस्वीर नहीं है और न ही किसी डोगरी महिला के गले में सजी बुग्दियों की कोई तस्वीर| यह गुज्जर युवती का तस्वीर मैंने गूगल में ढूँढी है| अपने सभी डोगरी- हिमाचली मित्रों से अनुरोध है कि आपके पास अगर कोई ऐसा चित्र है तो उसे इसे पोस्ट के साथ जोड़ें| अगर ‘बुग्दियों’ के विषय में कोई ओर जानकारी है तो उसे भी लिखें| आभारी रहूँगी|  
शशि पाधा
6 फरबरी, २०१८


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें