हमारी धरोहर ----डोगरी पोशाक--------
मेरे बहुत से मित्रों ने मुझसे पूछा है कि 'डोगरी पोशाक' पंजाबी पोशाक से भिन्न कैसे है या कितनी भिन्न है | मुझे इस विषय में जितनी भी जानकारी है उसे आपके साथ साझा कर रही हूँ | पंजाब में पहले सलवार कमीज़ ही पहनी जाती थी किन्तु जम्मू में डोगरी महिलाएँ कलियों वाला कुर्ता और सुत्थन पहनती थीं | 'सुत्थन' साठ के दशक में फैशन में आया चूडीदार के समान ही है केवल सुत्थन में चूड़ियाँ बहुत होती थी| सुत्थन धारी दार भी होती थी जो मोटी सिल्क में बनती थी, उस कपडे़ को ‘गुलबदन’ कहा जाता था ।हमारी दादी, परदादी और शायद उससे भी पहले डोगरी महिलाएँ केवल यही पोशाक पहनती थीं | मेरी दादी सास साठ के दशक में जब दिल्ली में रहने गईं तो यही पहनती थीं | उनको देख कर नवयुवतियाँ मेरी चाची सास से कहती थीं कि आपकी सास बहुत फैशनेबल है | कुर्ता शनील, प्लश का होता था और गर्मियों के लिए मलमल के कपड़े को रंग कर बनाया जाता था। समारोहों या विवाह शादियों में पहनने के लिए इसमें गोटा -किनारी का प्रयोग किया जाता था| कुर्ता और सुत्थन भिन्न रंगों की होती थी यानी contrast. आज का कुर्ता- पाजामा बहुत बाद फैशन में आया | मैं बहुत भग्यशाली हूँ कि मेरे पास मेरी माँ की और मेरी सासु माँ की डोगरी पोशाक है जो मैं कभी कभी त्योहारों पर पहन लेती हूँ | मेरी बहुओं और पोतियों के पास भी है जो बड़े चाव से इसे पहनती हैं | अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज के रखना हमारा कर्तव्य है | मैं अपने परिवार की कुछ डोगरी पोशाकों को आप के साथ साझा कर रही हूँ | मेरा विनम्र निवेदन जम्मू की लड़कियों से है कि आप अगर इस पोस्ट में कुछ जोड़ना चाहती हैं तो स्वागत है | आप सब इसे पहनें और अगली पीढ़ी के लिए अवश्य बनवा दें |
शशि पाधा
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