मंगलवार, 31 अगस्त 2021

 

आज मन अधीर है

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आज मन अधीर है |

काँपती कोमल धरा अब

मन में गहरी पीर है |

 

कान मेरे सुन रहे

शोर चीत्कार अब

आँख खोलूँ तो मैं देखूँ

संहार–हाहाकार अब

  शान्ति के देवता के पाँव में जंजीर है

   आज मन अधीर है |

 

हरित धरा की ओढ़नी

रक्त रंजित हो गई

आतंक के प्रहार देख

हर आँख नम हो गई

आज  विश्व के ह्रदय में बिंध गया तीर है

आज मन अधीर है |

 

संवेदना, सद्भाव क्यूँ  

मिट गये संसार से

विवश विकल खड़ा मनुज  

आतंक के प्रसार  से

 आज जन जन के नयन में वेदना का नीर है |

  मन बहुत अधीर है |

है प्रार्थना उस ईश से

कुछ तो अब निदान कर

हो अंत इस पाप का

कुछ तो समाधान कर

इन दानवों के हाथ में विनाश की तस्वीर है  

मन बहुत अधीर है

समस्या गंभीर है

मन में गहरी पीर है |

 

 

 

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