सपनों की उड़ान
एक संस्मरण
सपने लेना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन उनका साकार हो जाना बड़ी बात हो जाती है । मेरे पति प्रशिक्षित पैराट्रूपर हैं | मैंने उन्हें अपनी यूनिट
और साथियों के साथ कई बार पैराछूट के सहारे
जहाज से छलाँग लगाते देखा है । उनके लिए पैर जम्प कोई मनोरंजन का खेल नहीं
था, यह उनका पेशा भी था । यानी वह पैराछूट रेजिमेंट की महत्वपूर्ण
पलटन 9 पैरा स्पेशल फोर्सेस में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत थे और उन्होंने
1 पैरा स्पेशल फोर्सेस की कमान भी संभाली । मैं जब भी उन्हें जहाज से छलाँग
लगाते देखती, मेरे अन्दर बैठा हुआ मेरा बचपन भी वही करने को मचल उठता । मैं इनसे कई
प्रश्न पूछती--- आपको डर नहीं लगता ? आपको ज़मीन कैसी दिखाई देती है? अगर पैराछूट न खुले तो ----- यानी हर
छलाँग के समय नया सवाल होता था । 100 से अधिक जम्प देखते-देखते आदत सी पड़ गयी थी और अब मैंने सवाल पूछने बंद कर दिए थे| लेकिन
मन में एक आस धीरे धीरे पल रही थी | काश! मैं भी हवा में उड़ सकूँ, मैं भी जम्प कर सकूँ
।
अपने सैनिक जीवन के 30 साल तक मैं इस सपने को पालती -संवारती रही । और एक दिन
अचानक एक चमत्कार हो गया |
वर्ष 1997 में मेरे पति पंजाब के फिरोजपुर डिविजन के कमान अधिकारी थे ।
एक दिन छावनी के आस-पास
घूमते-घूमते उन्होंने एक गाँव के पास एक पुरानी हवाई पट्टी देखी।पूछने पर पता चला
कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय रॉयल एयर फ़ोर्स उड़ान भरने के लिए
इस हवाई पट्टी को प्रयोग में लाती थी । विभाजन के बाद पाकिस्तान की सीमा
के बहुत नज़दीक होने के कारण भारत की हवाई सेना इसका प्रयोग नहीं कर रही थी । गाँव वालों
ने वहाँ अनाज के ढेर लगा रखे थे और आस-पास थोड़ी-बहुत खेती भी की जाती थी
। मेरे पति को हर छावनी में कुछ कुछ सुधार करने की इच्छा रहती थी । इस हवाई
पट्टी को देखते ही उन्होंने इसे प्रयोग में लाने का निर्णय लिया । कुछ दिन के बाद उस स्थान पर ‘पैरा सेलिंग
स्पोर्ट्स कल्ब’ की नींव रख दी गयी ।
अंग्रेजी में एक कहावत है ‘The mighty oak was once just a seed ।’ उस वीरान पड़ी हवाई पट्टी की सफ़ाई और मरम्मत आरम्भ हो गयी। पैरासेलिंग के प्रशिक्षण के लिए विशेष प्रशिक्षक
बुलाये गये । आरम्भ में केवल दो या तीन पैराछूट ही उपलब्ध कराये गये । इस तरह बड़े जोश और उत्साह के बाद इस क्लब की नींव रखी
गयी । पूरी सैनिक छावनी में यह बात हवा की तरह फैल गई कि कुछ ही दिनों में यहाँ पैरासेलिंग एक खेल की तरह
आरम्भ होने वाली है । फिरोजपुर नगर के वासियों ने युवाओं ने, सिविल अधिकारियों ने इस
प्रोजेक्ट में इतनी दिलचस्पी दिखाई कि सैनिक अधिकारियों ने शीघ्र ही इसके शुभारम्भ का
निर्णय ले लिया ।
अब इस पूरी कहानी में
मेरी भूमिका क्या रही? न तो मैं सैनिक अधिकारी थी, न ही युवा लड़की जो इस कहानी में कोई किरदार निभा सके । मैंने कहीं बचपन में पढ़ा था --
“One Can Never Consent To Creep When One Feels An Impulse To Soar”
30 वर्ष तक मैं अपने पति और उनके साथ के सैनिकों को पैरा जम्प करते हुए देखती थी
। अब समय भी था और अवसर भी कि मैं भी हवा में उड़ान भरूँ,एक उन्मुक्त पंछी के समान कुछ
देर हवा से बातें करूँ और फिर अपने कृत्रिम पंखों के सहारे धरती पर लौट आऊँ। पर कैसे?
अपने मन की बात किसी से कहने में संकोच हो रहा था ।
फ़ौज में एक बहुत अच्छी प्रथा है। जब भी कोई नया काम शुरू होता है तो उस छावनी
के सब से वरिष्ठ अधिकारी या उनकी पत्नी से उसका उद्घाटन कराया जाता है । मैं मानती हूँ कि बड़ों का आशीर्वाद
लेना भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। इसी परम्परा को निभाने के लिए इस स्पोर्ट
क्लब को भारतीय सेना और नगर को सौंपने के
दिन मुझसे इसका उद्घाटन करने के लिए कहा गया| मैंने हामी भर दी |
उद्घाटन समारोह के दो
दिन पहले सभी लोग तैयारी में जुटे थे | मैं भी अपने पति के साथ सब का उत्साह बढ़ाने
के लिए चली गयी |एक दो जम्प भी देखे | मैं रोमांचित होकर इस करतब के विषय में वहाँ
खड़े अधिकारियों से विभिन्न प्रश्न पूछने लगी | मेरी उत्सुकता देख एक अधिकारी ने बड़ी
विनम्रता पूछा, “ मैम! क्या आप भी पैरासेलिंग करना चाहेंगी?” मुझे लगा कि शायद शिष्टाचार वश वे पूछ रहे हैं | मैंने पास खड़े
अपने पति की ओर देखा | उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, “जाइए,कीजिये अपने मन की आज|”
इससे पहले कि मैं कुछ
कहती प्रशिक्षकों ने मुझे तीय करना शुरू कर दिया | मुझसे कहा, “ मैम! आप एक बार किसी अन्य सैनिक को पैरासेलिंग
करते देख लें ताकि आपको पूरी टेक्नीक का पता चल जाए ।”
मेरे सैनिक पति तो बहुत खुश थे कि मैंने इस साहसिक कार्य को करने का निर्णय
लिया था । सच कहूँ तो मुझे कोई भय ही नहीं था क्यूँकि मैंने बरसों तक सैनिको को पैराजम्प करते देखा था । वास्तव में अपनी पलटन में कई बार Free Fall (Skydiving) के
करतब भी देखे थे । मैं शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार थी ।
मैं अपने पाठकों को पैरासेलिंग
की टेक्नीक
के बारे में बता दूँ । इसकी तैयारी के लिए प्रतिभागी
के शरीर पर एक हार्नेस बाँध दी जाती है । उसके साथ एक मोटी रस्सी बंधी होती
है जिसका दूसरा सिरा एक जीप के साथ बंधा होता है । पैरासेलर की पीठ पर एक पैराछूट बाँध दी जाती है । सुरक्षा के लिए सर पर हेलमेट और पाँव में भारी बूट पहनना
आवश्यक है । पैराछूट को पीछे दो लोगों ने पकड़ा होता है । जैसे ही संकेत
मिलता है, जीप चलने लगती है और खिलाड़ी को लगभग 20 -30 फुट तेज़
क़दमों से भागना होता है । जैसे ही पीछे खड़े सहायक पैराछूट छोड़ देते हैं उसमे हवा
भर जाती है । खिलाड़ी को बस उसी क्षण अपने को धरती से ऊपर थोड़ा उछालना होता है । इसके
बाद तो आप, हवा में,खुले आकाश में सैर कर रहे होते हैं। अब पूरा आकाश
आपका । जैसे ही जीप की गति धीमी होती जाती है आप नीचे आते जाते हो । और सम्भल कर धरती
पर पाँव टिका देते हो|
मैंने उस दिन बस एक जम्प
देखा, उसकी पूरी तैयारी को समझा और मैं उड़ने के लिए
तैयार । हार्नेस,मोटे दस्ताने- कोहनियों पर बंधी पट्टी, हेलमेट आदि सभी आवश्यक चीज़ें बाँध- पहन कर मैं हवाई पट्टी पर खड़ी हो गयी । आस-पास
बहुत से लोग थे । मेरा ध्यान केवल सामने खड़ी जीप पर था कि कब स्टार्ट होगी और मुझे
कब दौड़ आरम्भ करनी है । कोई डर नहीं था, कोई आशंका नहीं थी। बस, मेरे मन मस्तिष्क में
एक जूनून था, उड़ने का ।
जीप चली, मैं कितनी भागी पता नहीं पर अब मैं हवा में उड़ रही थी ।
parachute की डोरियाँ मेरे हाथ में थीं ताकि मैं अपनी पोजीशन पर नियंत्रण रख सकूँ ।
वैसे तो छावनी की सब से वरिष्ठ सैनिक पत्नी को हर बात को नाप-तोल के बोलना पड़ता है
लेकिन उस समय मैं स्वयं को एक छोटे से पंछी के समान समझ रही थी और सब कुछ भूल कर मैंने
न जाने -क्या क्या कह रही थी। कुछ-कुछ याद है - “यह तो अद्भुत है! मैं अब धरती पर नहीं आना चाहती |”
मैं हवा से बातें कर रही थी कि खुद से, नहीं जानती | लेकिन धीरे धीरे मेरे हार्नेस से बंधी रस्सी ढीली होती गयी और मैं नीची आती गयी | धरती पर पैर रखते ही मैंने स्वयं से कहा, “कौन कहता है मेरे पास पंख नहीं हैं |"
शशि पाधा
Email: shashipadha@gmail.com
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