गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020


अनमोल निधियाँ---

शशि पाधा

अतीत के झरोखे से झाँक के जिन्दगी को देखें तो कितने खुशनुमा पल आँखों के सामने चलचित्र से घूमने लगते हैं | आपका बीता हुआ कल मन के किसी कोने में बैठा रहता है चुपचाप |आपके एकांत के लम्हों में वह कभी बतियाता भी है , कभी गाता भी है और ले जाता है दूर -बहुत दूर | मेरे साथ अब यह अमूमन हो रहा है , बीता बहुत याद आ रहा है |

उन्हीं पलों से एक बहुत प्यारी सी याद आपके साथ साझा कर रही हूँ ---

जम्मू -कश्मीर विश्वविद्यालय में आयोजित inter College Competition के कार्यक्रम में मुझे गाँधी जी पर बोलना था | मैं अपने कॉलेज का प्रतिनिधित्व कर रही थी | उस समय के शिक्षा मंत्री Mr M C Chhagla मुख्य अतिथि थे | जब मेरी बारी आई तो मैंने अपनी बात इन दो पंक्तियों से आरम्भ की --

" लोग कहते हैं बदलता है ज़माना अक्सर
लोग वो भी हैं जो ज़माने को बदल देते हैं "

पता नहीं इन पंक्तियों का क्या प्रभाव पड़ा कि सारा सभागार तालियों से गूँज उठा | खैर ! मुझे उस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला | मुझे याद है कि अपने समापन भाषण में श्री छागला ने कहा कि मेरी हिन्दी इतनी उच्च नहीं है जितनी इन वक्ताओं की है | लेकिन सभागर में गूँजती हुई तालियों ने ही निर्णय दे दिया की आज की विजेता कौन हैं | और उन्होंने स्वयं मेरी यह दो पंक्तियाँ दोहराई | मुझे ईनाम में बहुत सी पुस्तकें मिली जिनमें एक थी -- गाँधी की आत्मकथा |
बहुत खुशी खुशी जब मैं घर आई और अपने पिता जी को पुस्तकें दिखाई तो वे बहुत प्रसन्न हुए | मेरे सर पर स्नेह भरा हाथ रखा और झट से अपने कुर्ते की जेब से कुछ निकाल कर मेरी मुट्ठी में थमा दिया और कहा ," यशस्वी भव " |




मुट्ठी खोल के देखा तो वो पाँच रूपये का नोट था | मैंने इस नोट को इनाम के तौर पर अपनी किताब में रख दिया | उन दिनों हर अनमोल चीज़ हम अपनी किताबों के पन्नों में ही सम्भाल कर रखते थे |

कुछ वर्षों के बाद मेरी शादी हुई | पतिदेव ने कह दिया ," आप केवल अपनी किताबें और सितार ले कर आएँगी हमारे साथ | और कुछ नहीं |" यानी दहेज की पूरी तौर से मनाही |
तो मेरी किताबों के साथ ही यह नोट भी मेरे ससुराल आ गया | पता नहीं कब मैंने इसे किताब से निकल कर अपने पर्स की पॉकेट में सहेज लिया | समय बीतता चला गया | मैंने कितने शहर बदले, घर बदले, देश भी बदला लेकिन यह नोट हमेशा मेरे छोटे से पर्स में मेरे साथ रहा | नया पर्स बदलती हूँ तो भी यह नोट उसमें सहेज लेती हूँ |
जीवन में बहुत कुछ देखा, पाया और भोगा | लेकिन वर्षों से मेरे पास मेरे पिता के आशीषों की निशानी जो अनमोल निधि है, वही मेरा जीवन धन है | कभी कभी अपने पर्स से निकाल कर इसे देखती हूँ , इस पर हाथ फेरती हूँ और बतियाती हूँ अपने पिता के साथ | वक्त फिर पीछे लौट जाता है |

शशि पाधा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें