बुधवार, 8 अप्रैल 2015


                      अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन, न्यू जर्सी -3 अप्रैल - 5 अप्रैल 2015 

न्यू यॉर्क के भारतीय कौंसुलावास की भागीदारी के साथ हिंदी संगम प्रतिष्ठान और न्यू जर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय के तत्वावधान में हिंदी शिक्षकों, विद्यार्थियों, अभिभावकों और पेशेवर हिंदी प्रेमियों के सक्रिय सहयोग से 3 से 5 अप्रैल, 2015  रटगर्स विश्वविद्यालय परिसर में द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन का सफल आयोजन किया गया |   हिंदी का बढ़ता संसार: संभावनाएं और चुनौतियाँ इस सम्मेलन का मुख्य विषय था |
सम्मलेन में  भारत एवं विभिन्न देशों से आए शिक्षकों,अमेरिका के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों के अतिरिक्त व्यापार और उद्योग क्षेत्रों के प्रतिनिधियों  तथा हिंदी शिक्षण से जुड़े अनेक भाषाविदों ने भाग लिया | भाष शिक्षण पर आधारित मुख्य सत्रोंमें स्टार्टटॉक शिक्ष्ण पद्धति के  अतिरिक्त 'सार्वजनिक माध्यमों जैसे फिल्म, टेलीविजन, और वेबसाइट पर हिंदी भाषा का सार्थक प्रयोग' पर  चर्चा की गई |
अप्रैल 3 की शाम  के रंगारंग कार्यक्रम में  कुचिपुड़ी , कत्थक  एवं बॉलीवुड के गानों पर आधारित नृत्य प्रदर्शन  ने सब का मन मोह लिया | 4 अप्रैल की शाम काव्य गोष्ठी की आयोजन हुआ जिसमें देश विदेश से आए कवियों ने भाग लिया | 5 अप्रैल को  शिक्षण से जुड़े शिक्षकों ने शिक्षण में टैक्नोलोजी की सहायता, भाषा अध्ययन के माध्यम से विदेशी विद्यार्थियों को भारत की संस्कृति से परिचित कराने के उद्देश्य  आदि विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किये |

 इस आयोजन की विशेष बात थी कि  रटगर्स विश्विद्यालय के विद्यार्थियों ने  इस सम्मेलन  की सफलता के लिए अथक परिश्रम किया | हिन्दी संस्थान प्रतिस्थान  के अध्यक्ष श्री अशोक ओझा , रटगर्स विश्विद्यालय की प्राध्यापिका शाहीन प्रवीण एवं इस आयोजन से जुडी  अन्य स्वयं  सेवी संस्थाए इस की सफलता के लिए बधाई  के पात्र हैं |

शशि पाधा 



मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

मेरी प्रिय रचना




 मैं तुझे पहचान लूँगी


लाख ओढ़ो तुम हवाएँ
ढाँप दो सारी दिशाएँ
बादलों की नाव से  
मैं तुम्हरा नाम लूंगी 
रश्मियों की ओट में भी
मैं तुझे पहचान लूंगी |

रात तारों का चमकना
या कोई संकेत तेरा
मुस्कुराती चाँदनी सब
खोल देगी भेद तेरा

जुगनुओं की ज्योत थाम
मैं तुझे आह्वान दूँगी
भोर के झुटपुटे में
मैं तुझे पहचान लूँगी |

रेत कण पर बूँद सावन
या सुनी पदचाप तेरी
मिलन के आभास में ही
काँपती है देह मेरी





हो अमा की रात कोई
नयनदीप दान दूँगी
नभ की नीली नीलिमा में  
मैं तुझे पहचान लूँगी |

लौट आओ चिर पथिक तुम
ढूँढने की रीत  छोड़ो
बीच धार नाव तेरी
थाम लो पतवार, मोड़ो

राग छेड़ें जल तरंगें
मैं तुझे निज गान दूँगी
लहर के उल्लास में
मैं तुझे पहचान लूँगी |

शशि पाधा -