रविवार, 26 जुलाई 2015

माहिया

1
सावन की बूँद झरी
नैनों की नदिया
कोरों से उमड़ पड़ी |
2
सागर कुछ जाने ना
नदिया के मन की
बूझे, पहचाने ना |
3
पर्वत से आई है
मन में साध लिए
मीलों चल आई है |
4
  
कलकल में कहने दो
बहती नदिया को
रोको ना बहने दो |
5
सागर भी मौन खड़ा
स्वागत की घड़ियाँ
प्रिय पथ पर नयन जड़ा |
6
सब लाज शर्म छोड़ी
बहती नदिया ने
निज धार इधर मोड़ी |
7
किरणें मुस्काती हैं
लहरों के धुन में
मल्हारें गाती हैं |
8
चिरबंधन की वेला
नीले अम्बर में
निशितारों का मेला |
9
यह प्रीत पुरानी है
हर युग में बीती
वो प्रेम कहानी है |
10
मोती अनमोल हुआ
प्रीत पिटारी का
धन से ना मोल हुआ |

शशि पाधा


शनिवार, 25 जुलाई 2015

तकरार –मनुहार ----माहिया
       *        
भरमाए रहते हो
बरसो तो जानें
बस छाए रहते हो |
    *
कुछ पल को तड़पोगी
गर हम बरस गए
चुनरी में भर लोगी |
      *
कुछ समझ नहीं आता
सच-सच कह देना
बिजुरी से क्या नाता ?
      *
मुझको तो वो भाती
नभ की गलियों में
हम बचपन के साथी |
      *
थोड़े से काले हो
धूप बताती है
कुछ भोले भाले हो |
      *
हम तो बंजारे हैं
इत-उत फिरते हैं
औरों से न्यारे हैं |
      *
क्यों रोज़ सताते हो
इक पल दिख जाते
दूजे छिप जाते हो |
      *

यह खेल पुराना है
आँख मिचौनी को
प्रेमी ने जाना है |
      *
यह बात  तभी जानूँ
मन के आँचल में
छिप पाओ तो मानूँ |
      *
इस पल को तरस गए
आँखें मींचो तो
लो हम तो बरस गए |
       *
आँखों में भर लेंगे
तुझको मोती सा
पलकों में जड़ लेंगे |
      *
बूँदें जो झरती हैं
आँखों की झीलें
हमसे ही भरती हैं |
       *
सावन को जाने दो
तुम तो रुक जाना
त्योहार मनाने दो |
      *
लो कैसे जाएँगे
 डोरी प्रीत भरी
हम तोड़ न पाएँगे |

   शशि पाधा


सावन का गीत

 बरस गए 


लो बरस गए !

अभी- अभी तो
  नभ गलियों में
   इठलाते से आए थे
कभी घूमते
कभी झूमते
   भँवरे से मंडराए थे

देख घटा की अलक श्यामली
   अधरों से यूँ परस गए
       मतवारे बदरा बरस गए

रीती नदिया
  झुलसी बगिया
   डाली- डाली प्यास जगी
जल-जल सुलगी
   दूब हठीली
   नेह झड़ी की आस लगी

भरी गगरिया लाए मेघा
  झर-झर मनवा सरस गए
   देखो फिर से  बरस गए

सुन के तेरे
 ढोल- नगाड़े
   धरती द्वारे आन खड़ी
रोली चंदन
मिश्री -आखत
 धूप और बाती थाल धरी

 रोम-रोम से रोये, साजन
  बिन तेरे हम  तरस गए
  लो कारे बदरा बरस गए ।



शशि पाधा