माहिया
1
सावन की बूँद झरी
नैनों की नदिया
कोरों से उमड़ पड़ी |
2
सागर कुछ जाने ना
नदिया के मन की
बूझे, पहचाने ना |
3
पर्वत से आई है
मन में साध लिए
मीलों चल आई है |
4
कलकल में कहने दो
बहती नदिया को
रोको ना बहने दो |
5
सागर भी मौन खड़ा
स्वागत की घड़ियाँ
प्रिय पथ पर नयन जड़ा
|
6
सब लाज शर्म छोड़ी
बहती नदिया ने
निज धार इधर मोड़ी |
7
किरणें मुस्काती हैं
लहरों के धुन में
मल्हारें गाती हैं |
8
चिरबंधन की वेला
नीले अम्बर में
निशितारों का मेला |
9
यह प्रीत पुरानी है
हर युग में बीती
वो प्रेम कहानी है |
10
मोती अनमोल हुआ
प्रीत पिटारी का
धन से ना मोल हुआ |
शशि पाधा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें