शनिवार, 25 जुलाई 2015

सावन का गीत

 बरस गए 


लो बरस गए !

अभी- अभी तो
  नभ गलियों में
   इठलाते से आए थे
कभी घूमते
कभी झूमते
   भँवरे से मंडराए थे

देख घटा की अलक श्यामली
   अधरों से यूँ परस गए
       मतवारे बदरा बरस गए

रीती नदिया
  झुलसी बगिया
   डाली- डाली प्यास जगी
जल-जल सुलगी
   दूब हठीली
   नेह झड़ी की आस लगी

भरी गगरिया लाए मेघा
  झर-झर मनवा सरस गए
   देखो फिर से  बरस गए

सुन के तेरे
 ढोल- नगाड़े
   धरती द्वारे आन खड़ी
रोली चंदन
मिश्री -आखत
 धूप और बाती थाल धरी

 रोम-रोम से रोये, साजन
  बिन तेरे हम  तरस गए
  लो कारे बदरा बरस गए ।



शशि पाधा


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