बुधवार, 24 जून 2015

अनन्त की ओर से ----

क्या तुम आए 

अम्बर की गलियों में आज
कण कण पिघली श्वेत चांदनी       
  क्या तुम आए?

मुक्ताहल सी तारक लड़ियाँ
बाँध रही नीलम सी साँझ
नील घटा सा श्यामल अंजन
आँज रही दुल्हन सी साँझ


कहीं दूर से पुरवाई ने
छेड़ी मीठी राग -रागिनी
  क्या तुम आए?


चन्दन की खुश्बू में लिपटी
पाती  कोई आई थी
श्वास-श्वास में मीठी सिरहन
क्या संदेसा लाई थी

मंद हवा में धीमे धीमे
लहराया था छोर बाँधनी
क्या तुम आये?


चुपके चुपके आकर किसने
आँचल मेरा थाम लिया
न देखूँ, पर फिर भी लगता
तूने मेरा नाम लिया

दूर क्षितिज की देहरी पर
हँस दी कोई रेख दामिनी

क्या तुम आए?

आज लजीली रजनी गंधा
कुछ सिमटी, सकुचाई सी
निशीतारों की मद्धिम लौ में
देखी इक परछाईं सी

मन अंगना में हौले हौले
मुसकाई थी मिलन यामिनी
क्या तुम आए?



शशि पाधा   

अनन्त की ओर से -----



  जाने क्यों 


जाने क्यों आज फिर से
  भीग गया मन का आकाश !

कोई बदली बरसी होगी
धीमे-धीमे, चुपके-चुपके
कहीं तो बिजुरी सिसकी होगी
अँधियारों में छुपके-छुपके
  जाने क्यों आज किसी का
  टूट गया संचित विश्वास !

किरणों की डोरी से बाँधी
किसने भेजी होगी पीर
किस की आहें पल भर उमड़ीं
बन कर बरसीं होंगी नीर
    जाने क्यों रोम-रोम से
    आज उठते हैं निश्वास !

धुँधली सी कोई याद पुरानी
अँखियों में घिर आई होगी
बीते कल की साध अधूरी
फिर से जीने आई होगी
  जाने क्यों आज अधर पे
 मुखरित है सूना सा हास !

  शशि पाधा





रविवार, 21 जून 2015

मानस मंथन से------

      सृजन

जब रिमझिम हो बरसात
और भीगें डाल औ पात
जब तितली रंग ले अंग
और फूल खिलें सतरंग
  जब कण –कण महके प्रीत
  तब शब्द रचेंगे गीत |

जब नभ पे हँसता चाँद
ओंर तारे भरते माँग
जब पवन चले पुरवाई
हर दिशा सजे अरुणाई

जब मन छेड़े संगीत
तब शब्द लिखेंगे गीत |

जब पंछी करें किलोल
और लहरों में हिलोल
जब धरती अम्बर झूमें
और भँवरे कलिका चूमें
  जब बंधन की हो रीत
  तब शब्द बुनेंगे गीत |

जब कोकिल मिश्री घोले
पपिहारा पिहु-पिहु बोले
 वासन्ती पाहुन आए
नयनों से नेह बरसाए
   जब संग चले मनमीत
   तब शब्द बनेंगे गीत |


 शशि पाधा 

शुक्रवार, 19 जून 2015


पारिजात से ------

तुम क्यों रोए पारिजात

मैं तो रोई पीर विरह में
तुम क्यों रोए पारिजात ?

दिन के पंथी से क्या तेरा
मुझसा ही कोई रिश्ता नाता
धूप किरन की स्वर्ण लड़ी से
बाँध तुझे भी रोज़ लुभाता
  वो ना जाने प्रीति रीति
  ठगी गई मैं सारी रात
  ठगा तुम्हें भी पारिजात ?

आँचल बाँधूं फूल पंखुड़ी
नयना अम्बर ओर जड़े  
ओढूँ, पहनूँ तेरी खुशबू
जाने कब संकेत करे
  
झर झर झोली भर दी तूने
भली लगी तेरी सौगात
धीर बंधाना पारिजात |

अता पता ना मिला संदेसा
चन्दा भी मुख मोड़ खड़ा
नभ गलियों में जाके मीता  
उसे ढूँढना आज ज़रा

    तू तो जाने रोग औषधि
    तू ही जाने मन की बात
      रोग मिटाना पारिजात |


  शशि पाधा


सोमवार, 15 जून 2015

अँगना बेला महक गया

बगिया क्यारी हुई सुवास
अँगना बेला महक गया

पी कर खुशबू पवन झकोरा
बौराया सा डोले
गीतों की गुंजन में भँवरा
प्रेम पिटारी खोले
गुनगुन सा मृदुहास
अँगना बेला चहक गया

चुन चुन कलियाँ मालिन गूँथे
कँगना, झूमर, गजरा
दर्पण देखे रूप, लजाए
नयनन आँजे कजरा
तन-मन था मधुमास
वेणी बेला लहक गया

जूही चम्पा रजनी गंधा
गुपचुप करतीं बातें
कौन हाट से लाई खुशबू
मोती सी सौगातें
पूनो छिटके हास
भीगा, बेला दहक गया

- शशि पाधा
१५ जून २०१५

गुरुवार, 4 जून 2015

क्या तुम आए 

अम्बर की गलियों में आज
कण कण पिघली श्वेत चांदनी       
  क्या तुम आए?

मुक्ताहल सी तारक लड़ियाँ
बाँध रही नीलम सी साँझ
नील घटा सा श्यामल अंजन
आँज रही दुल्हन सी साँझ


कहीं दूर से पुरवाई ने
छेड़ी मीठी राग -रागिनी
  क्या तुम आए?


चन्दन की खुश्बू में लिपटी
पाती  कोई आई थी
श्वास-श्वास में मीठी सिरहन
क्या संदेसा लाई थी

मंद हवा में धीमे धीमे
लहराया था छोर बाँधनी
क्या तुम आये?


चुपके चुपके आकर किसने
आँचल मेरा थाम लिया
न देखूँ, पर फिर भी लगता
तूने मेरा नाम लिया

दूर क्षितिज की देहरी पर
हँस दी कोई रेख दामिनी

क्या तुम आए?

आज लजीली रजनी गंधा
कुछ सिमटी, सकुचाई सी
निशीतारों की मद्धिम लौ में
देखी इक परछाईं सी

मन अंगना में हौले हौले
मुसकाई थी मिलन यामिनी
क्या तुम आए?


शशि पाधा   अगस्त २०१०