पारिजात से ------
तुम क्यों रोए
पारिजात
मैं तो रोई पीर विरह
में
तुम क्यों रोए
पारिजात ?
दिन के पंथी से क्या
तेरा
मुझसा ही कोई रिश्ता
नाता
धूप किरन की स्वर्ण
लड़ी से
बाँध तुझे भी रोज़
लुभाता
वो ना जाने प्रीति रीति
ठगी गई मैं सारी रात
ठगा तुम्हें भी पारिजात ?
आँचल बाँधूं फूल
पंखुड़ी
नयना अम्बर ओर
जड़े
ओढूँ, पहनूँ तेरी
खुशबू
जाने कब संकेत करे
झर झर झोली भर दी
तूने
भली लगी तेरी सौगात
धीर बंधाना पारिजात
|
अता पता ना मिला
संदेसा
चन्दा भी मुख मोड़
खड़ा
नभ गलियों में जाके
मीता
उसे ढूँढना आज ज़रा
तू तो जाने रोग औषधि
तू ही जाने मन की बात
रोग मिटाना पारिजात |
शशि पाधा
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