क्या तुम आए
अम्बर की गलियों
में आज
कण कण पिघली श्वेत
चांदनी
क्या तुम आए?
मुक्ताहल सी तारक
लड़ियाँ
बाँध रही नीलम सी
साँझ
नील घटा सा श्यामल
अंजन
आँज रही दुल्हन सी
साँझ
कहीं दूर से
पुरवाई ने
छेड़ी मीठी राग -रागिनी
क्या तुम आए?
चन्दन की खुश्बू
में लिपटी
पाती कोई आई थी
श्वास-श्वास में
मीठी सिरहन
क्या संदेसा लाई
थी
मंद हवा में धीमे
धीमे
लहराया था छोर
बाँधनी
क्या तुम आये?
चुपके चुपके आकर
किसने
आँचल मेरा थाम
लिया
न देखूँ, पर फिर भी
लगता
तूने मेरा नाम
लिया
दूर क्षितिज की
देहरी पर
हँस दी कोई रेख
दामिनी
क्या तुम आए?
आज लजीली रजनी
गंधा
कुछ सिमटी, सकुचाई सी
निशीतारों की
मद्धिम लौ में
देखी इक परछाईं सी
मन अंगना में हौले
हौले
मुसकाई थी मिलन
यामिनी
क्या तुम आए?
शशि पाधा अगस्त २०१०
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