बुधवार, 24 जून 2015

अनन्त की ओर से -----



  जाने क्यों 


जाने क्यों आज फिर से
  भीग गया मन का आकाश !

कोई बदली बरसी होगी
धीमे-धीमे, चुपके-चुपके
कहीं तो बिजुरी सिसकी होगी
अँधियारों में छुपके-छुपके
  जाने क्यों आज किसी का
  टूट गया संचित विश्वास !

किरणों की डोरी से बाँधी
किसने भेजी होगी पीर
किस की आहें पल भर उमड़ीं
बन कर बरसीं होंगी नीर
    जाने क्यों रोम-रोम से
    आज उठते हैं निश्वास !

धुँधली सी कोई याद पुरानी
अँखियों में घिर आई होगी
बीते कल की साध अधूरी
फिर से जीने आई होगी
  जाने क्यों आज अधर पे
 मुखरित है सूना सा हास !

  शशि पाधा





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