जाने क्यों
जाने क्यों आज फिर
से
भीग गया मन का आकाश !
कोई बदली बरसी
होगी
धीमे-धीमे,
चुपके-चुपके
कहीं तो बिजुरी
सिसकी होगी
अँधियारों में
छुपके-छुपके
जाने क्यों आज किसी का
टूट गया संचित विश्वास !
किरणों की डोरी से
बाँधी
किसने भेजी होगी
पीर
किस की आहें पल भर
उमड़ीं
बन कर बरसीं होंगी
नीर
जाने क्यों रोम-रोम से
आज उठते हैं निश्वास !
धुँधली सी कोई याद
पुरानी
अँखियों में घिर
आई होगी
बीते कल की साध
अधूरी
फिर से जीने आई
होगी
जाने क्यों आज अधर पे
मुखरित है सूना सा हास !
शशि पाधा
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