तकरार –मनुहार ----माहिया
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भरमाए रहते हो
बरसो तो जानें
बस छाए रहते हो |
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कुछ पल को तड़पोगी
गर हम बरस गए
चुनरी में भर लोगी |
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कुछ समझ नहीं आता
सच-सच कह देना
बिजुरी से क्या नाता
?
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मुझको तो वो भाती
नभ की गलियों में
हम बचपन के साथी |
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थोड़े से काले हो
धूप बताती है
कुछ भोले भाले हो |
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हम तो बंजारे हैं
इत-उत फिरते हैं
औरों से न्यारे हैं
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क्यों रोज़ सताते हो
इक पल दिख जाते
दूजे छिप जाते हो |
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यह खेल पुराना है
आँख मिचौनी को
प्रेमी ने जाना है |
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यह बात तभी जानूँ
मन के आँचल में
छिप पाओ तो मानूँ |
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इस पल को तरस गए
आँखें मींचो तो
लो हम तो बरस गए |
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आँखों में भर लेंगे
तुझको मोती सा
पलकों में जड़ लेंगे
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बूँदें जो झरती हैं
आँखों की झीलें
आँखों की झीलें
हमसे ही भरती हैं |
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सावन को जाने दो
तुम तो रुक जाना
त्योहार मनाने दो |
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लो कैसे जाएँगे
डोरी प्रीत भरी
हम तोड़ न पाएँगे |
शशि पाधा
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