https://danceglimpses.wordpress.com/2019/01/13/the-light-as-mother-new-perspectives-in-kathak-harpreet-kaur-jass/
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कोरोना काल और बदलती जीवन शैली
शशि पाधा
परिवर्तन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। समय समय पर प्रकृति भी अपना रूप बदलती है । इस चराचर जगत में हर
प्राणी परिस्थतियों के अनुसार अपने आप को ढाल लेता है । मनुष्य
में भी परिवर्तन की प्रवृति प्रकृति के अनायास अनुकरण से ही आई है । मानव जाति की प्रगति के लिए समयानुसार परिवर्तन एक आवश्यक माप दंड है
।लेकिन
आज मनुष्य की स्थिति का कुछ और ही रूप-रंग है । इस
वैश्विक महामारी में कोरोना के प्रकोप से बचने के लिये मनुष्य की जीवन शैली में जो
परिवर्तन आया है वे परिस्थति वश है । ऐसा जैसे कोई
अद्भुत, अदृश्य सूत्रधार जीवन के रंगमंच पर छड़ी घुमा कर निर्देश दे रहा हो कि
ऐसा ही करो, ऐसे ही जियो। यही
लाभकारी भी होगा और स्वस्थ जीवन के लिए रामबाण भी ।
कोरोना काल में जैसे ही लॉकडाउन की स्थति आई,
मनुष्य
की जीवन शैली में भी बहुत तेजी से बदलाव आ गया । उसकी
दिनचर्या बिल्कुल बदल गई । इस महामारी से पहले जीवन सुनियोजित,सुनिश्चित
तरीके से चल रहा था । उसका हर कार्य निश्चित समय पर होता था।
परिवारों ने, औद्योगिक कम्पनियों ने, शिक्षा
संस्थानों ने, वैज्ञानिकों ने अपने कार्यक्रमों की योजनाएँ
निर्धारित कर ली थीं। किन्तु लॉकडाउन में पूर्व की सारी
व्यवस्थाएं एवं परिस्थितियाँ बदल गई हैं। इस भयंकर महामारी के प्रभाव से लोगों
की व्यवहारिक, मानसिक
और सामजिक व्यवस्था अछूती नहीं रही है ।
वायरस
के प्रकोप से बचने के लिए प्रत्येक प्राणी को अपना दृष्टिकोण और व्यवहार में बहुत
बड़ा परिवर्तन लाना पड़ा है
। भारतीय लोग हाथ जोड़ कर नमस्ते के साथ साथ एक दूसरे के गले मिल कर
या पैर छू कर अपने करीबी रिश्तेदारों के प्रति अपना आदर और स्नेह प्रकट करते रहे
हैं । किन्तु
समय की माँग यह करती है कि दो फीट दूर रह कर केवल हाथ जोड़ कर ही अभिवादन कर लिया
जाए। भारतीय घरों में प्रवेश करने से पहले जूते आंगन में या मुख्य द्वार के बाहर
खोल कर जाने की प्रथा थी ।
फिर धीरे धीरे यह अनिवार्य नियम लुप्त होता चला गया । अब हर कोई इस
व्यवहार में सचेत हो गया है । बाहर की चप्पल-जूते घर के अंदर नहीं आने पर फिर से जोर दिया जा रहा
है ।
कोरोना काल में सब से अधिक बदलाव आया है नौकरी
पेशा लोगों में । लॉकडाउन के दौरान लाखों-करोड़ों लोग घर से ही काम कर रहे हैं। इस
दौरान मीटिंग, प्लानिंग
से लेकर अपने सहकर्मियों के साथ बातचीत, चर्चा वगैरह भी वीडियो कॉल के जरिए या अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के
जरिए हो रहा है। तकनीकी कठिनाइयों के कारण कुछ लोगों को काम समाप्त करने में
कठिनाई होती होगी लेकिन इस क्षेत्र में भी धीरे धीरे बदलाव आ रहा है । घर से काम
करने से लोगों के समय की बचत हो रही है । दफ्तरों के खर्चों में भी कमी हो रही है ।
सम्भावना यही है कि अब घर में लैप टॉप की सहायता से काम काज करने में काम करने की
क्षमता बढ़ जायेगी ।
लॉकडाउन
से पहले लोग पार्क में आराम से बैठ कर सुख दुःख बाँटते थे,, हँसी-ठहाके सुनाए पड़ते थे । अब लोगों
का जीवन घर की चारदीवारी तक ही सीमित रह गया है । बच्चों के व्यायाम और खेलकूद पर भी
बहुत प्रभाव पड़ा है। अब माँ-बाप को बच्चों के लिए घर के अंदर ही खेलने के तरीकों
के विषय में सोचना पड़ता है । बच्चों को बाहर न जाने के लिए समझाना कठिन हो जाता है
। बच्चे तो कोमल होते हैं । न जाने उनके कोमल हृदय और मस्तिष्क में हर चीज़ की
मनाही का क्या दुष्प्रभाव पड़ता होगा । हमें इस विषय में बहुत सचेत रहने की भी
आवश्यकता है ।
दुकानदारी, व्यवसाय एवं उद्द्योग धंधे हमारे
जीवन का एक अनिवार्य अंग हैं । उपभोक्ताओं को तो केवल सुविधाओं की कमी का आभास हो
रहा होगा लेकिन ज़रा सोचिए जिन परिवारों का जीवन ही इन छोटे-बड़े व्यवसाओं पर ही
निर्भर है और जो लोग आर्थिक दृष्टि से केवल दूकान, रेढ़ी या गुमटी के सामान को बेच
कर ही अपने परिवार का पेट भरते होंगे, उनके साथ क्या बीत रही होगी । लेकिन इसके
साथ ही लोगों का सेवा भाव और उपकारी पक्ष भी सामने आया है । धार्मिक स्थानों पर
लंगर लग रहे है, स्वयंसेवी संस्थाएँ अभावग्रस्त लोगों तक राशन पहुँचा रही हैं । यहाँ
पर यह भी कहना उचित होगा कि लोगों में भी कम में निर्वाह करने की प्रवृति जाग उठी
है । जो है, जितना है, उतने में ही संतुष्टि करनी होगी और यह आदत सुखमय जीवन की
द्योतक होगी ।
कोरोना संकट के बाद शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा
प्रणाली का स्वरूप भी बदल जाने की संभावना है । शिक्षा के क्षेत्र में ई -लर्निंग का
भी ज्यादा इस्तेमाल होने की संभावनायें होंगी। इसके लिए लोगों को अधिकाधिक तकनीकी
ट्रेनिंग की आवश्यकता पड़ेगी ।विद्यार्थियों को अधिक से अधिक लैप टॉप की सुविधा
दिलवाना, गाँवों-गाँवों में इन्टरनेट के केंद्र खोलना शिक्षा संस्थानों और सरकार
के लिए प्राथमिकता का विषय होगा।
इस महामारी के फलस्वरूप शादी-ब्याह और सामूहिक
आयोजनों के स्वरूप में बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है । इसके संक्रमण से बचने लिए ऐसे
पारिवारिक या सामाजिक समारोहों में जाने में भी कुछ नियम और कुछ सीमाएँ निर्धारित
की गई हैं । इससे कई लाभ होंगे । खर्चा तो कम होगा साथ में अपव्यय से भी छुटकारा
होगा । बहुत से मध्यमवर्गीय परिवार जिन्हें केवल समाज या लोकलाज के कारण लाखों का
धन इन आयोजनों में लुटाना पड़ता था, शायद उन्हें कुछ राहत मिले ।
कोरोना काल में और उसके बाद के जीवन में
स्वास्थ्य सेवाओं के ढाँचे और कार्यप्रणाली में सकारात्मक बदलाव आने की संभावनाएं
बढ़ रही हैं। सरकारी अस्पतालों की दशा भी तेजी
से सुधरेगी । प्राइवेट अस्पतालों व नर्सिग होम की गति मंद होगी। सरकारी अस्पतालों
की दयनीय स्थिति के कारण लोग प्राइवेट डॉक्टरों के पास या प्राइवेट अस्पतालों में
जाने को विवश हो जाते हैं । हो सकता है इस महामारी के भयावह प्रभाव से इन संस्थाओं
की कार्यप्रणाली में भी कुछ परिवर्तन आए ।
इस कामकाजी जिन्दगी में लोगो ने प्रकृति के
सौन्दर्य को पूरी तरह नकार सा दिया था । किन्तु लॉकडाउन के समय में प्रकृति पूर्ण सौन्दर्य के साथ धरती पर लौट आई
है । जिन सुंदर पशु पक्षियों के साथ मानव ने कोई नाता नहीं रखा था, वे पुन: बागों
में, गलियों में ,सड़कों पर स्वछन्द विचरण करने लगे हैं । शिवालिक की पहाड़ियों ने
मीलों दूर मैदानों में रहने वाले लोगों को दर्शन दिए हैं । नई पीढ़ी ने इतना निर्मल
और नीला आकाश शायद पहली बार देखा है । यमुना का जल वर्षों बाद इतना साफ़ दिखाई दे
रहा है । अगर बुद्धिमान मानव इन संकेतों से यह सीखे कि प्रकृति भी शायद मानव जाति
से वर्षों से रूठी थी । वे भी खुली हवा में जीने का अधिकार मांग रही थी जो मानव ने
उससे छीन लिया था ।
वर्षों से रोज़गार के लिए युवा वर्ग गाँवों से
शहरों की ओर पलायन कर रहा था । इसका मुख्य कारण यह भी था कि गाँवों में जीवन यापन
के साधन सिमटते चले जा रहे थे । अब चूँकि परिस्थिति वश लोग फिर से गाँवों की ओर
लौट रहे हैं तो सरकार भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने में ठोस कदम
उठायेगी । आत्मनिर्भरता के लिए कुटीर उद्योग एवं स्वदेशी उत्पादन में उन्नति के
मार्ग खुलेंगे ।जब अच्छा जीवन स्तर अपने घर-गाँव में ही लोगों को उपलब्ध होगा तो
कौन अपने खेत या घर को छोड़ कर शहर की ओर पलायन करेगा।
पूरे विश्व को इस महामारी की चपेट में देख कर
मानव जाति हताश सी होने लगी थी । क्यूँकि कहीं से भी ऐसा समाचार नहीं आ रहा था कि
इस का अंत होने वाला है । ऐसी परिस्थति ने लोगों को अपने भीतर झाँकने का अवसर दिया
है । परिवारों में सद्भाव, आपसी मेलजोल बढ़ा है । और आशा की जा रही है कि हर कोई
सद्भावना के रास्ते पर चलते रहने के लिए तत्पर है ।
वेदों में लिखा मन्त्र है ---सर्वे भवन्तु
सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्---
हम सब की ईश्वर से यही प्रार्थना है कि प्रभु सम्पूर्ण चराचर जगत को इस भयंकर
वैश्विक विपदा से मुक्त कराए ।
शशि पाधा
Email:
shashipadha@gmail.com
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