समझौतों की लिखा पढ़ी
समझौतों की लिखा पढ़ी
में
अक्षर-अक्षर घाव हुआ
वेदन का घेराव हुआ |
ना थे कोइ कंकर
पत्थर
ना थे पैने तीर कमान
शब्दों की थी घेरा
बंदी
रक्षक खड़े रहे अनजान
झूठ सत्य का हुआ छलावा
शकुनि जैसा दाँव हुआ |
ईंट-ईंट और
टुकड़ा-टुकड़ा
रिश्तों की पहचान
बनी
छत दीवारें, बंटे
चौबारे
सीमा बीच दालान बनी
गठरी बाँधे पूछे देहरी
मोल मेरा किस भाव हुआ?
संस्कारों की पावन
पोथी
पन्ना-पन्ना जली
जहाँ
शीश झुकाए मर्यादाएँ
सीढ़ी-सीढ़ी ढली वहाँ
हाथ जोड़ता तुलसी चौरा
मूल्यों का दुर्भाव हुआ|
शून्य भेदती रह गई
आँखें
ममता गुमसुम मौन खड़ी
बूढ़े बरगद की शाखों
से
पत्ती –पत्ती पीर
झरी
अधिकारों की महा प्रलय में
स्वारथ का टकराव हुआ|
अक्षर-अक्षर घाव हुआ |
शशि पाधा
एक अच्छी रचना ! :)
जवाब देंहटाएंsundar geet shashi ji
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