शुक्रवार, 27 मार्च 2015

रचनात्मकता और मन:स्थिति ----

समझौतों की लिखा पढ़ी


समझौतों की लिखा पढ़ी में
अक्षर-अक्षर घाव हुआ
वेदन का घेराव हुआ |

ना थे कोइ कंकर पत्थर
ना थे पैने तीर कमान
शब्दों की थी घेरा बंदी
रक्षक खड़े रहे अनजान
   झूठ सत्य का हुआ छलावा
  शकुनि जैसा दाँव हुआ |

ईंट-ईंट और टुकड़ा-टुकड़ा
रिश्तों की पहचान बनी
छत दीवारें, बंटे चौबारे
सीमा बीच दालान बनी

    गठरी बाँधे पूछे देहरी
    मोल मेरा किस भाव हुआ?
संस्कारों की पावन पोथी
पन्ना-पन्ना जली जहाँ
शीश झुकाए मर्यादाएँ
सीढ़ी-सीढ़ी ढली वहाँ
   हाथ जोड़ता तुलसी चौरा
    मूल्यों का दुर्भाव हुआ|

शून्य भेदती रह गई आँखें
ममता गुमसुम मौन खड़ी
बूढ़े बरगद की शाखों से
पत्ती –पत्ती पीर झरी
    अधिकारों की महा प्रलय में
     स्वारथ का  टकराव हुआ|
     अक्षर-अक्षर घाव हुआ |

शशि पाधा
    



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