मंगलवार, 25 जुलाई 2017
सोमवार, 3 जुलाई 2017
कल फिर लौट के आऊँगा ----
विदा की वेला में सूरज ने
धरती की फिर माँग सजाई,
तारक वेणी बाँध अलक में
नीली चुनरी अंग ओढ़ाई,
नयनों में भर सांझ का अंजन
हर शृंगार की सेज बिछाई,
धरती की फिर माँग सजाई,
तारक वेणी बाँध अलक में
नीली चुनरी अंग ओढ़ाई,
नयनों में भर सांझ का अंजन
हर शृंगार की सेज बिछाई,
और कहा सो जाओ प्रिय
मैं कल फिर लौट के आऊँगा।
मैं कल फिर लौट के आऊँगा।
भोर किरण कल प्रात तुझे
चूम कपोल जगाएगी
लाल ग़ुलाबी पुष्पित माला
ले द्वारे पर आएगी
पुनर्मिलन के सुख सपनों की
आस में तू शरमाएगी
उदयाचल पर खड़ा मैं देखूँ
तू कितनी सज जाएगी
चूम कपोल जगाएगी
लाल ग़ुलाबी पुष्पित माला
ले द्वारे पर आएगी
पुनर्मिलन के सुख सपनों की
आस में तू शरमाएगी
उदयाचल पर खड़ा मैं देखूँ
तू कितनी सज जाएगी
पलक उठा तू मुझे देखना
किरणों में मुसकाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
किरणों में मुसकाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
दोपहरी की धूप छाँव में
खेलेंगे हम आँख मिचौली
डाल डाल से पात पात से
छिप कर देखूँ सूरत भोली
प्रणय पुष्प की पाँखों से तब
भर दूँगा मैं तेरी झोली
खेलेंगे हम आँख मिचौली
डाल डाल से पात पात से
छिप कर देखूँ सूरत भोली
प्रणय पुष्प की पाँखों से तब
भर दूँगा मैं तेरी झोली
दूर क्षितिज तक चलना संग
नयनों में भर ले जाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
नयनों में भर ले जाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
शशि पाधा
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