सोमवार, 3 जुलाई 2017

कल फिर लौट के आऊँगा ----
विदा की वेला में सूरज ने
धरती की फिर माँग सजाई,
तारक वेणी बाँध अलक में
नीली चुनरी अंग ओढ़ाई,
नयनों में भर सांझ का अंजन
हर शृंगार की सेज बिछाई,
और कहा सो जाओ प्रिय
मैं कल फिर लौट के आऊँगा।
भोर किरण कल प्रात तुझे
चूम कपोल जगाएगी
लाल ग़ुलाबी पुष्पित माला
ले द्वारे पर आएगी
पुनर्मिलन के सुख सपनों की
आस में तू शरमाएगी
उदयाचल पर खड़ा मैं देखूँ
तू कितनी सज जाएगी
पलक उठा तू मुझे देखना
किरणों में मुसकाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
दोपहरी की धूप छाँव में
खेलेंगे हम आँख मिचौली
डाल डाल से पात पात से
छिप कर देखूँ सूरत भोली
प्रणय पुष्प की पाँखों से तब
भर दूँगा मैं तेरी झोली
दूर क्षितिज तक चलना संग
नयनों में भर ले जाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
शशि पाधा
कितना शौक है इन्हें 
दादी का चश्मा पहनें 
पर कभी नाक छोटी 
और कभी कान 
और यह चश्मा है कि 
यह गिरा आ आ आआआ
वो गिरा आआअह्हह्हह
अब कोई बताए
क्यों बनाते हैं लोग
बड़े चश्मे
हमें सताने को ?
थोड़ा रुलाने को ?
या ----
दादी को
हंसाने को ??????


शशि पाधा