विश्व श्रमिक दिवस पर विशेष
चलो गंवई अपने गाँव
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बाँध के अपना डोरा-डण्डा
चलो गंवई अपने गाँव ।
राम राज शहरों में होगा
सोच तुम्हें भी लाई होगी
परजा-राजा परम सुखी सब
तुझको आस बंधाई होगी
भूल भुलैयाँ राह भुलाएँ
थकते-हारे घायल पाँव ।
उलटी पुलटी खाली जेबें
रोटी, कपड़ा, ठौर नहीं
छिनी नौकरी, छिनी दिहाड़ी
ख़त्म कभी न दौड़ कहीं
साँस- आँख में मिट्टी-कंकर
कानों में बस काँव- काँव ।
माल मवेशी मोल दिए जो
बिन तेरे कुछ रोते होंगे
दादी को जो सौंप के आये
मिट्ठू रात न सोते होंगे
बाट जोहती बरगद छाँव ।
चमक दमक तो सोना नाहीं
राम कथा तो बाँची होगी
छले , लुभाये ढोंगी हिरणा
बात यहाँ भी साँची होगी
खालिस सोना गाँव की धरती
काहे भटके ठाँव -ठाँव ।
चलो गंवई अपने गाँव ।
शशि पाधा
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