रविवार, 1 मई 2022

 विश्व श्रमिक दिवस पर विशेष 

 

 चलो गंवई  अपने गाँव

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बाँध के अपना डोरा-डण्डा

चलो गंवई अपने गाँव

 

राम राज शहरों में होगा

सोच तुम्हें भी लाई होगी

परजा-राजा परम सुखी सब

तुझको आस बंधाई होगी

 

 भूल भुलैयाँ  राह भुलाएँ

   थकते-हारे घायल पाँव

 

उलटी  पुलटी  खाली जेबें

रोटी, कपड़ा, ठौर नहीं

छिनी नौकरी, छिनी दिहाड़ी

ख़त्म  कभी न दौड़ कहीं

   साँस- आँख में मिट्टी-कंकर    

     कानों में बस  काँव- काँव 

 

 

माल मवेशी मोल दिए जो

बिन तेरे कुछ रोते  होंगे

दादी को जो सौंप के आये

मिट्ठू  रात सोते होंगे

 

 चूक चुका अब धीरज ढाढस

  बाट जोहती  बरगद  छाँव

 

चमक दमक तो सोना नाहीं

राम कथा तो बाँची होगी

छले , लुभाये ढोंगी हिरणा

बात यहाँ  भी साँची होगी

 

      खालिस सोना गाँव की धरती  

      काहे भटके  ठाँव -ठाँव

 

  चलो गंवई अपने गाँव

 

   शशि पाधा

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