मन की बात
मन की बात बताऊँ, रामा !
सुख की कलियाँ
गिरह बाँधूं
नदिया पीर बहाऊँ, रामा !
माथे की तो पढ़ न पाई
आखर भाषा समझ न आई
नियति खेले आँख मिचौनी
अँखियां रह गईं बंधी बंधाई ।
हाथ थाम,
राह डगर सुझाए
ऐसा मीत बनाऊँ, रामा !
कभी दोपहरी झुलसी देहरी
आन मिली शीतल पुरवाई
कभी अमावस रात घनेरी
जुगनू थामे जोत जलाई
विधना की
अनबूझ पहेली
किस विध अब सुलझाऊँ, रामा !
ताल तलैया,पोखर झरने
देखें अम्बर आस लगाए
नैना पल- पल ढूँढ़ें सावन
बरसे, मन अंगना हरियाए
धीर धरा
पतझार बुहारी
रुत वसंत मनाऊँ , रामा !
मन की बात बताऊँ , रामा !
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बदरा बरस गए
लो बरस गए !
अभी- अभी तो
नभ गलियों में
इठलाते से आए थे
कभी घूमते
कभी झूमते
भँवरे से मंडराए थे
देख घटा की अलक श्यामली
अधरों से यूँ परस गए
मतवारे बदरा बरस गए
रीती नदिया
झुलसी बगिया
डाली- डाली प्यास जगी
जल-जल सुलगी
दूब हठीली
नेह झड़ी की आस लगी
भरी गगरिया लाए मेघा
झर-झर मनवा सरस गए
कजरारे बदरा बरस गए
सुन के तेरे
ढोल- नगाड़े
धरती द्वारे आन खड़ी
रोली चंदन
मिश्री -आखत
धूप और बाती थाल धरी
रोम-रोम से रोये, साजन
बिन तेरे हम तरस गए
लो कारे बदरा बरस गए ।
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कैसे बीनूँ
कैसे बीनूँ , कहाँ सहेजूँ
बाँध पिटारी किसको भेजूँ
मन क्यों इतना बिखरा सा है ?
खोल अटरिया काग बुलाऊँ
पूछूँ क्या संदेसा कोई ?
बीच डगरिया नैन बिछाऊँ
पाहुन का अंदेसा कोई ?
कैसे बंदनवार सजाऊँ
देहरी-आँगन बिखरा सा है ।
कोकिल गाए, आस बँधाए
भीनी पुरवा गले लगाए
किरणें छू कर अँग निखारें
रजनी गन्धा अलक बँधाए
कैसे सूनी माँग संवारूँ
कुँकुम-चन्दन बिखरा सा है ।
इक तो छाई रात घनेरी
दूजे बदरा बरस रहे
थर-थर काँपे देह की बाती
प्रहरी नयना तरस रहे
कैसे निंदिया आन समाए
पलकन अंजन बिखरा सा है ।
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जिंदगी नचा रही
दौडती जा रही
भागती जा रही
जिंदगी बेसबब
इधर-उधर जा रही
छूट गए खेत गाँव
टिके नहीं कहीं भी पाँव
ढूँढते रह गए
संतोष की शीत छाँव
हठी- नटी सी मृग तृषा
कितना नचा रही |
अनबुझी प्यास का
हाट संग चलता रहा
सौदा था उधार का
सूद सा बढ़ता रहा
सुखों का मूल मोल क्या
भूलती जा रही |
रुक कर कभी कहीं
पोंछ कोई आँख नम
हाथा थाम साथ चल
खो रहे जो साँस - दम
बाँट ले संवेदना
चेतना जगा रही |
ठहर जा देख ले
चाँद को उगते हुए
क्षितिज की रेख पर
सूर्य को रुकते हुए
झील की तरंग में
चाँदनी नहा रही
तू क्यों ना देख पा रही ?
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चिंतन –मंथन
गाँव- गाँव अब शहर हुए
दरिया सिमटे नहर हुए
सागर चिंता घोर
न जाने क्या होगा |
खुली छत,तारों से बातें
घुली चाँदनी,झीलमिल रातें
दूर की रह गई दौड़
न जाने क्या होगा
सूरज का रथ स्वर्ण जड़ा
दूर सड़क के मोड़ खड़ा
खिड़की बैठी भोर
न जाने क्या होगा
गोधूली अब धूल भरी
बगिया क्यारी शूल भरी
उड़ता फिरता शोर
न जाने क्या होगा
जंगल सब बियाबान हुए
पंछी सब परेशान हुए
कहाँ पे नाचें मोर
न जाने क्या होगा
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behtaareeen:)
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