धूप गुनगुनी
आज भोर से आँगन में
धूप गुनगुनी छाई है,
लगता जैसे दूर देस से
माँ मुझे
मिलने आई है ।
भोर किरण ने चूम के पलकें
सुबह सुबह जगाया था
धीमे धीमे खोल के खिड़की
रंग स्वर्णिम बिखरया था
शीतल मंद पवन छुए जो
आँचल क्या वह् तेरा है?
नीले अम्बर में बदली सा
तेरे
स्नेह का घेरा है ?
अंग अंग को सिहरन देने
आई जो पुरवाई है
लगता जैसे दूर कहीं से
माँ ही मिलने आई है ।
भरी दोपहरी में अम्बर से
बिन बदली ही मेह झरा
खाली सी थी मन की गगरी
किसने आकर नेह भरा?
आँगन में तुलसी का बिरवा
धीमे धीमे डोल रहा
सौगातों से भरी पिटारी
धीरे से कोई खोल रहा |
अम्बुआ की डाली के नीचे
बैठी जो परछाई है
लगता जैसे दूर देश से
माँ ही मिलने आई है ।
देख न पाती माँ मैं तुमको
फिर भी तुम तो यहीं कहीं
आँगन में या बगिया में हो
कलियों में तुम छिपी कहीं|
एक बार भी मिल जाती तो
जी भर तुमसे मिल लूँ माँ
नयनों में भर सूरत तेरी
पलकों को मैं मूँद लूँ माँ
जानूँ तू तो यही कहेगी
माँ भी कभी परायी है ?
फिर क्यों लगता बरसों बाद
तू मुझसे मिलने आई है?
फिर क्यों लगता बरसों बाद -------
शशि पाधा
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन लक्ष्मी के साहस और जज़्बे को नमन - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
हार्दिक आभार आपका |
हटाएंसुंदर। पढ़ कर मन कुछ भीग गया है।
जवाब देंहटाएंपरमेश्वरी जी,
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद | यह इश्ते ही साझे होते हैं | सब को याद आ जाती है |
धन्यवाद परमेश्वरी जी | कुछ रिश्ते ही साझे होते हैं , बस याद आ ही जाती है |
हटाएंBahut sundar, bilkul Maa ke pyar si .. komal sahriday rachna !
जवाब देंहटाएंमंजु जी , हार्दिक धन्यवाद आपका |
हटाएंसुंदर.......
जवाब देंहटाएंकौशल लाल जी , मेरे अहसास को सराहने के लिए धन्यवाद |
हटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, रचना की सरहना के लिए धन्यवाद |
हटाएंbahut khoob abhvayakti
जवाब देंहटाएंमधु जी , पहचान रही हूँ आपको | धन्यवाद बहुत सा |
हटाएंयह जननी पर जननी की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है। दर्द भी है। टीस भी है। नाभि से संसार जुड़ा है। परिन्दा दूर दूर उड़ कर भी नीड़ की और लौटता है। मन भटकता है तो लौट कर कुछ समय फिर उसी सुरक्षित गोद में पहुँच जाता है जिसके आँचल की छाँव के साये में जिन्दगी के प्रथम असहाय पल बीते थे।
जवाब देंहटाएंचन्द्र प्रकाश जी, माँ शब्द में ही इतनी शीतलता और स्निघ्दता है कि इसकी और कोई उपमा नहीं | आप मेरे ब्लॉग पर आए और इस रचना के मर्म को पहचाना | हार्दिक धन्यवाद |
हटाएं