गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

      तोल मोल के बोल -- दोहे

जग ने मुझ को सीख दी, तोल मोल के बोल |
अब मैं बोलूँ तोल के, लोग कहें अनमोल ||

मितभाषी जो मनुज हो, चैन मिले दिन रात |
न बहुतेरे मीत बनें, दुश्मन करे न घात ||

हार गई मैं बोल के, कोई सुने न बात |
अब चुप हूँ तो जग कहे, गूँगे का क्या साथ |
|
तरकश में लौटे नहीं, छूटा तीर कमान |
 निकला जो दीवार से, छोड़े कील निशान ||

मीठी वाणी वैद की, आधा रोग निदान |
मिश्री घुल गई नीम में, बच गए जान –प्राण ||

जग जितना भी कुटिल हो, छोड़ो न निज धर्म |
पीड़ा सब की बाँट लो, भर दो सब का मर्म ||

मधुर वचन के मंत्र से, जीतो जग संसार |
कोयल से ही सीख लो, मधुरस का व्यवहार ||

गुड़ से मैंने सीख ली, एक पते की बात |
अधरों पे जो घोल लो, करे कभी न घात ||

खारा जल सागर भरा, बुझे कभी ना प्यास |
छोटा सा झरना झरा, पंथी के मन आस ||

कटु वचन यूँ घाव करें, काँटा चुभता पाँव |
भरी दुपहरी बाँट दो, ठंडी ठंडी छाँव ||

शशि पाधा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें