तोल मोल के बोल -- दोहे
जग ने मुझ को सीख
दी, तोल मोल के बोल |
अब मैं बोलूँ तोल
के, लोग कहें अनमोल ||
मितभाषी जो मनुज हो,
चैन मिले दिन रात |
न बहुतेरे मीत बनें,
दुश्मन करे न घात ||
हार गई मैं बोल के,
कोई सुने न बात |
अब चुप हूँ तो जग कहे,
गूँगे का क्या साथ |
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तरकश
में लौटे नहीं, छूटा तीर कमान |
निकला जो दीवार से, छोड़े कील निशान ||
मीठी वाणी वैद की,
आधा रोग निदान |
मिश्री घुल गई नीम
में, बच गए जान –प्राण ||
जग जितना भी कुटिल
हो, छोड़ो न निज धर्म |
पीड़ा सब की बाँट लो,
भर दो सब का मर्म ||
मधुर वचन के मंत्र
से, जीतो जग संसार |
कोयल से ही सीख लो,
मधुरस का व्यवहार ||
गुड़ से मैंने सीख
ली, एक पते की बात |
अधरों पे जो घोल लो,
करे कभी न घात ||
खारा जल सागर भरा,
बुझे कभी ना प्यास |
छोटा सा झरना झरा,
पंथी के मन आस ||
कटु वचन यूँ घाव
करें, काँटा चुभता पाँव |
भरी दुपहरी बाँट दो,
ठंडी ठंडी छाँव ||
शशि पाधा
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