वो कौन थी
एक पार्क की बेंच पर
बैठे मैंने उसे कई बार देखा था | भारत से अमेरिका आए मुझे कुछ ही दिन हुए थे | समय
काटने के लिए हर शाम मैं घर के पास के पार्क में टहलने के लिए जाती थी |
परदेस में किसी स्वदेसी को देख लेना असीम
आनन्द का कारण बन जाता है | मैं बड़ी उत्सुकता से एक –दो बार उसके पास से गुज़री
कि शायद बात हो जाए,लेकिन उसने मेरी ओर देखा तक नहीं |
वो चुपचाप बैठी
शून्य में अपलक ताका करती, जैसे उसमे कुछ ढूँढ रही हो | कभी धरती पर दृष्टि गढ़ाए अपने पाँव से किन्हीं
प्रश्नों के उत्तर कुरेदती रहती | कभी मौन, निश्चेष्ट बैठी रहती |
बहुत बार इच्छा हुई
कि उसके पास जाऊँ, उससे परिचय बढाऊँ या उसकी निराशा का कारण पूछूँ| किन्तु मैं
उसके मौन की परिधि को लाँघने का साहस नहीं जुटा पाई |
एक बार, केवल एक बार
उसने थोड़ी आत्मीयता से मेरी ओर देखा था| मुझे लगा कि वो अपने एकान्त लोक से इहलोक
में आ गई हो |उसे अपनी ओर देखते हुए मैंने सोचा कि शायद उसे मेरी आवश्यकता हो,
शायद मैं उसकी कोई सहायता कर सकूँ| साहस करके मैं उसके पास चली गई |मुझे सामने खड़ा
देख वो एक बार चौंक सी गई |
मैंने पूछा,” क्या
मैं यहाँ बैठ सकती हूँ ?”
बिना उत्तर दिए वो
थोड़ा सा खिसक गई | मुझे लगा, मना भी तो नहीं किया |
उसके पास बैंच पर
बैठते हुए मैंने कहा,” मेरा नाम गरिमा है | मैं भारत से हूँ | यहाँ कुछ दिन पहले
ही आई हूँ |
बिना दृष्टि उठाए
उसने केवल “हूँ’ कहा| क्योंकि मैं उम्र में उससे बड़ी थी अत: उसकी निराशा देख कर
मेरे मन में ममता जागृत हुई | बात बढ़ाने के लिए मैंने उससे पूछा,” बेटी,क्या नाम
है तुम्हारा ?”
पहली बार उसने
दृष्टी उठाई | मेरी तरफ़ नहीं, सामने फैलते अन्धकार की ओर देखते हुए उसने कहा,”मेरा
नाम मंदोदरी है”|
नाम सुन कर मैं चौंक
गई| मैंने रामायण में पढने के अलावा आज तक किसी का यह नाम नहीं सुना था | जिस नाम
के साथ एक वेदनामय कथांश जुड़ा हो , ऐसा नाम इसके माता पिता ने इसे क्यों दिया ?
प्रश्नसूचक दृष्टि
से उसकी और देखते हुए मैंने कहा, “मंदोदरी, किन्तु”?
मेरा सवाल नहीं सुना
उसने | तीव्र वेग से उठती हुई वो बोली,” यह मेरा असली नाम नहीं है | मैंने अपना
नाम बदल दिया है “| और तेज़ क़दमों से चलती हुई वो घिरती साँझ के अंधेरों में खो गई|
वो तो चली गई लेकिन
एक प्रश्न चिन्ह मेरे लिए छोड़ गई | मैं अब शून्य से पूछ रही थी –क्या रावण अभी तक
जीवित है ??????
शशि पाधा
धन्यवाद कुलदीप ठाकुर जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और मर्मस्पर्शी कहानी...
जवाब देंहटाएंकुछ न कहकर बहुतकुछ कह गई यह छोटी सी कहानी ।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लघुकथा , हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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