बुधवार, 18 नवंबर 2015

बस यूँ ही -----

क्षणिकाएँ 
    1
टूट गया बाँध
सब्र का
बह गया पानी
पर कोई नहीं डूबा
ना रोने वाला
ना रुलाने वाला
और, ज़िन्दगी
यूँ ही चलती रही
किनारों पर |
  2
री पतझड़ !
थोड़ा रुक कर आना
अभी, और पहननी हैं चूड़ियाँ
डालियों ने पत्तों की
अभी , थके मांदे राही ने
ओढ़नी है छाँव
अभी, धूप ने खेलनी है
आँख मिचौली
अभी पल रहे हैं बच्चे
घोंसलों में
अभी मत आना
सुन रही हो ना ?

  3

शांत है
अभी,हवा भी
पत्तों ने भी
अभी, रंग नहीं बदला
काँपी नहीं हैं डालियाँ
अभी
फिर क्यों है
मन में
पतझड़ी आभास |

  शशि पाधा


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