मोती जड़ी सी ओढ़नी
ओढ़ ली धरा ने रात
मोतियों की ओढ़नी
मुग्ध चाँद देखता
चाँदनी सी मोहिनी |
बंध गई हैं डार से
हिम की श्वेत झालरें
कर्णफूल –झुमकियाँ
चाँदी गढ़ी सी
झाँझरें
सजी, खिल-खिला
रही
मोद में मोदिनी |
झुक रही हैं डालियाँ
सौन्दर्य के भार से
आज शीत ऋतु की
होड़ है बहार से
स्तब्ध ऋतुराज भी
देख आभ शोभिनी |
बरस रही हैं
बून्दियाँ
हरशृंगार झर
रहे
सूर्य ओट में खड़े
हाथ क्यों मल रहे
विरहणी वसुंधरा
हो गई है योगिनी |
शशि पाधा,
जनवरी २०१६
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