मुरली की तान
बंसी ने जब जान ली, राधा कान्हा प्रीत
सुर दूजा साधे नहीं और न गाए गीत|
ब्रज की भोली गोपियाँ, सुन मुरली की तान
घुँघरू बाँधें पाँव में, अधर धरें मुस्कान
कनक रंग राधा हुई, कारे- कारे श्याम
दोपहरी की धूप संग, खेल रही यूँ शाम |
राधा रानी गूथती वैजन्ती की माल
कान्हा पहने रीझते राधा लाल गुलाल
ऊधो से जा पूछतीं अपने मन की बात
कृष्णा ने परदेस से, भेजी क्या सौगात
यमुना तीरे श्याम ने, खेली लीला रास
लहर-लहर नर्तन हुआ, कण-कण बिखरा हास
गुमसुम राधा घूमती, दिल से है मजबूर
हर पंथी से पूछती, मथुरा कितनी दूर
कोकिल कूजे डार पे, गाये मीठे गीत
ढूँढे सुर में राधिका, बंसी का संगीत
सोचूँ जग में हो कभी, मीरा-राधा मेल
दोनों सखियाँ खेलतीं, प्रीत-रीत का खेल
पल छिन चुभते शूल से, क्षीण हुई हर आस
कैसे काटे रात दिन, नैनन आस निरास
- शशि पाधा
बंसी ने जब जान ली, राधा कान्हा प्रीत
सुर दूजा साधे नहीं और न गाए गीत|
ब्रज की भोली गोपियाँ, सुन मुरली की तान
घुँघरू बाँधें पाँव में, अधर धरें मुस्कान
कनक रंग राधा हुई, कारे- कारे श्याम
दोपहरी की धूप संग, खेल रही यूँ शाम |
राधा रानी गूथती वैजन्ती की माल
कान्हा पहने रीझते राधा लाल गुलाल
ऊधो से जा पूछतीं अपने मन की बात
कृष्णा ने परदेस से, भेजी क्या सौगात
यमुना तीरे श्याम ने, खेली लीला रास
लहर-लहर नर्तन हुआ, कण-कण बिखरा हास
गुमसुम राधा घूमती, दिल से है मजबूर
हर पंथी से पूछती, मथुरा कितनी दूर
कोकिल कूजे डार पे, गाये मीठे गीत
ढूँढे सुर में राधिका, बंसी का संगीत
सोचूँ जग में हो कभी, मीरा-राधा मेल
दोनों सखियाँ खेलतीं, प्रीत-रीत का खेल
पल छिन चुभते शूल से, क्षीण हुई हर आस
कैसे काटे रात दिन, नैनन आस निरास
- शशि पाधा
वाह, कृष्ण राधा के अनन्य प्रेम को रेखांकित करती अनुपम प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएं