शनिवार, 9 अगस्त 2014

http://trivenni.blogspot.in/2014/08/blog-post.html  -- इस लिंक पर प्रस्तुत हैं मेरे रचे "माहिया "

माहिया ----शशि पाधा 

यह प्यार अनोखा है 
मन जब हीर हुआ 
कब,किसने रोका है|

राँझा क्या गाता है
गीतों के सुर में
मन पीर सुनाता है |

सागर जल खारा है
किरणों से पूछो
उनको तो प्यारा है |

लो बदरा बरस गए
धरती प्यासी थी
चुप आके सरस गए |

यह भाषा कौन पढ़े
नैना कह देते
अधरों पे मौन धरे |

यह चुप ना रहती है
साँसें बोलें ना
धड़कन सब कहती है |

कैसी मनुहार हुई
कल तक रूठे थे
अब मन की हार हुई |

मन पंछी उड़ता है
सपने पंख बने
रोके न रुकता है |

दोनों ने ठानी है
राधा कह दे जो
मीरा ने मानी है |

बिन पूछे जग जाने
प्रेम किया जिसने
वो रब को पहचाने 



  शशि पाधा 

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