फ्युनरल होम
“फ्युनरल होम” में रीमा
का शव पहियों वाले हरे रंग के ताबूत में
रखा हुआ था| ताबूत को सफेद-गुलाबी रंग के फूलों से सजाया हुआ था| आस-पास अनगिन
खुशबूदार अगरबत्तियाँ और मोमबत्तियाँ जल रहीं थी |
मेन दरवाज़े की ओर से
लम्बे-लम्बे काले कोट पहने, मुख पर अफसोस का मुखौटा लगाए लोग धीरे-धीरे हाल में
प्रवेश कर रहे थे | यह सब रीमा के पति साहिल के ऑफिस के लोग थे जो शायद उससे कभी
मिले ही नहीं थे | ना तो रीमा के परिवार
से भारत से कोई आ पाया था और ना ही साहिल के परिवार से | रीमा का देहांत शुक्रवार
को हुआ था| विदेश में किसी की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार अधिकतर शनिवार या
रविवार को हो तो सब को सुविधा रहती है| काम काज से छुट्टी नहीं लेनी पड़ती| अत: सब
की सम्मति से अंत्येष्टि के लिए रविवार ही निर्णित किया गया | साहिल उसके बेटे का
दोस्त था, इसीलिए वो भी इस अंत्येष्टि में सम्मिलित हुई थी | हालांकि वो रीमा से
परिचित नहीं थी |
हॉल के अन्दर एक
माइक पर पंडित जी ने गीता का १५वाँ अध्याय पढ़ना आरम्भ किया | सब लोग चुपचाप सुन
रहे थे | आधे लोग अमेरिकन थे,उन्हें तो शायद कुछ भी समझ नहीं आ रहा था| अब पंडित जी ने यमराज
की कहानी सुनाते हुए कहा,” संसार में केवल मृत्यु ही ऐसी होनी है जो अटल है| इसका
समय, स्थान और कारण पहले से ही निश्चित होता है और इसे कोई टाल नहीं सकता” | वगैरह –वगैरह |
बाहर बहुत ज़ोरों से
बर्फ गिर रही थी | कुछ लोग अपने मोबाइल पर मौसम की जानकारी लेने में व्यस्त थे |
शायद उन्हें चिंता थी कि अगर और देरी हुई तो सड़कों में यातायात के बंद हो जाने का
डर था | मौसम विभाग ने ऐसी चेतावनी सुबह से ही दी थी किन्तु अंतिम संस्कार भी आज
ही होना तय था| लोग शोक में डूबे कम और वापिस जाने को ज़्यादा अधीर लग रहे थे| अगरबत्ती,धूप,
मोमबत्तियों का टिमटिमाना, पंडित जी का मंत्रोच्चारण, सब यंत्रवत चल रहा था |
और, दृश्य बदल रहा था| वो देख रही थी ट्राली में रखे ताबूत में रीमा के
स्थान पर अपने निर्जीव शरीर को | आस –पास कोई भी अपना नहीं | अफ़सोस का मुखौटा लगाए
अजनबी चेहरे|
एक बार फिर से विदेश में बसने की पीड़ा
का सर्प उसे दंश मार गया और वो फफक फफक कर रोने लगी |
शशि पाधा