बस यूँ ही -----7
1
रस्ता पथरीला हो तो
मैं पगडन्डी ढूँढ लेती हूँ
चलते-चलते
प्रकृति भी हमसफर हो जाती है |
2
अब नहीं दिखाई देती
उसकी
पहाड़ी झरने सी मुस्कान
धूप सोख गई
या
बह गई
किसी तेज़ धार में
वही जाने |
3
रख दिया
ताक पर
तुम्हारा दिया
अपमान, अवहेलना
मत छूना उसे
तुम भी
कहीं
चोट ना लगे |
5
अलगनी से
उतार लिया
अपना अतीत
ढूँढनी नहीं पड़ी
माँ की गोद
पिता का दुलार
कुछ दिन
फिर से
बच्ची हो जाऊँगी मैं |
शशि पाधा
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