मंगलवार, 15 नवंबर 2016

बस यूँ ही -----7


      1

रस्ता पथरीला हो तो
मैं पगडन्डी ढूँढ लेती हूँ
चलते-चलते
प्रकृति भी हमसफर हो जाती है |

    2

अब नहीं दिखाई देती
उसकी
पहाड़ी झरने सी मुस्कान
धूप सोख गई
या
बह गई
किसी तेज़ धार में
वही जाने |

   3
 रख दिया
ताक पर
तुम्हारा दिया
अपमान, अवहेलना
 मत छूना उसे
तुम भी
कहीं
चोट ना लगे |

  5
अलगनी से
उतार लिया
अपना अतीत
ढूँढनी नहीं पड़ी
माँ की गोद
पिता का दुलार
कुछ दिन
फिर से
बच्ची हो जाऊँगी मैं |

    शशि पाधा




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