तस्वीरें बोलती हैं ------
वर्ष 1965 में भारत – पाक युद्ध चल रहा था | मेरे पति उस समय अपनी यूनिट
के साथ अमृतसर –लाहौर सीमा पर तैनात थे | 20 दिन के घमासान युद्ध के बाद भारतीय
सेना ने पाकिस्तान का बहुत सा क्षेत्र जीत लिया था | इच्छोगिल नहर पर बसा हुआ बरकी
गाँव लाहौर से लगभग 13/14 किलोमीटर दूर था और युद्ध के समय भारतीय सेना वहाँ तक
पहुँच गई थी | अब यह क्षेत्र और इसके आस पास के क्षेत्र भारतीय सेना के अधीन थे |
युद्ध अपने पूरे वेग पर था | इस गाँव के निवासी अपनी सुरक्षा के लिए गाँव छोड़ कर
किन्हीं सुरक्षित स्थानों की ओर चले गए थे | किन्तु कुछ बूढ़े और असहाय निवासी अपना
गाँव छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे | २३ सितम्बर को युद्ध विराम की घोषणा भी हो गई थी
| अब बरकी गाँव के बचे-खुचे निवासी भारतीय सेना के मेहमान थे | भारतीय सैनिक उनकी
सेवा करते, दवा दारू देते और हर परिस्थिति में उनकी सहायता कर रहे थे | इस तस्वीर
में बंद वृद्ध दम्पति किसी भी हालत में अपना गाँव छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे | वृद्ध
पुरुष का नाम था चिरागदीन | उनकी पत्नी काफी अस्वस्थ थीं और वो कहीं जाने में असमर्थ थीं | उन्हें शायद
शान्ति की उम्मीद भी थी |
एक दिन मेरे पति इस दम्पति
से बातचीत कर रहे थे कि उस वृद्ध पुरुष ने
इन्हें बताया कि उसका जन्म पंजाब के जालन्धर जिले के किसी गाँव में हुआ था | उसे
अपने जन्मस्थान की, अपने बचपन के घर की बहुत याद सताती रहती है | यह बात कहते हुए
मेरे पति ने देखा कि उस वृद्ध की ऑंखें अश्रुपूर्ण थी | आते -आते इन्होने जब उससे
पूछा कि क्या उन्हें किसी चीज़ की ज़रुरत है तो उसने हाथ जोड़ कर कहा,” साहब , आप
मुझे एक बार मेरे गाँव में ले जाइए | मैं मरने से पहले अपना जन्म स्थान देखना चाहता हूँ |”
उसकी इच्छा पूरी करने में कुछ कठिनाइयाँ तो थी किन्तु मेरे सहृदय पति ने एक
दिन उसे एक फौजी जेकेट पहनाई, गाड़ी में
बिठाया और ले गए उसे उसके गाँव | उस पाकिस्तानी वृद्ध की खुशियों का विवरण तो मैं शब्दों
में नहीं दे सकती | आप केवल उसे महसूस कर
सकते हैं | वापिस आकर जब मेरे पति ने उनसे विदा ली तो उसने दोनों हाथ आसमान की ओर उठा कर इन्हें दीर्घ आयु
का आशीर्वाद दिया |
लगभग छह महीनों के बाद
ताशकंद समझौते के बाद भारतीय सेना को यह क्षेत्र पाकिस्तान को वापिस लौटाना था |
मेरे पति इस वृद्ध दम्पति से मिलने गए | उन्होंने इन्हें बड़े स्नेह से गले लगाया,
तस्वीर लेने को कहा और साथ में भेंट किया एक मिट्टी का कटोरा और कुरान शरीफ की एक
प्रति | विदा के समय दोनों की आँखें नम थीं |
अब आप ही बताएँ कि इस युद्ध
मे किसकी हार –किसकी जीत ?????
शशि पाधा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एक मच्छर का एक्सक्लूजिव इंटरव्यू“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय संस्मरण.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देवेन्द्र जी |
हटाएंज़िन्दगी की राह में कितने संवेदनशील अनुभव मिलते हैं
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, ज़िन्दगी अनुभवों की पिटारी है , कभी कभी खोल लेती हूँ | धन्यवाद आपका |
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