तस्वीरें बोलती हैं
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भारत-
म्यांमार सीमा क्षेत्र
अस्सी के दशक की बात
है, भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुत तनाव की स्थिति
थी| मणिपुर–नागालैंड के जंगली प्रदेशों में उग्रवादियों ने आतंक फैला रखा था
| देश में अराजकता और अशांति फैलाने के
उद्देश्य से चीन और पाकिस्तान इन्हें प्रशिक्षित भी कर रहे थे और घातक हथियारों से
लैस भी | हर दिन सुरक्षा बलों पर घातक प्रहार या किसी को अगुआ करने की घटनाएँ घट
रही थी | यह उग्रवादी थे तो इन्हीं प्रदेशों के निवासी लेकिन आतंक फैला कर ये कुछ
दिनों के लिए म्यांमार (बर्मा) के बीहड़ जंगलों में छिप जाते थे | वो यह जानते थे कि म्यांमार (बर्मा) दूसरा देश
है और भारतीय सेना सीमा का उल्लंघन कर के उनके कैम्पों में जाकर कोई कार्रवाही
नहीं कर सकती | नागालैंड –बर्मा के उस सीमा क्षेत्र में उनके कैम्प भी स्थापित थे
जिनमें उन्हें लगातार अस्त्र –शस्त्र चलाने का प्रशिक्ष्ण मिलता था |
खैर, एक दिन भारत के
सारे समाचार पत्र एक दुखद समाचार की सुर्ख़ियों से भर गए | इन उग्रवादियों ने भारतीय
सुरक्षा बलों की गाड़ियों पर घात लगा कर हमला किया जिस में सेना के 22 सैनिक शहीद हो गए
| बस अब और नहीं, वाद-संवाद का समय नहीं - यही सोच कर भारत सरकार ने इनसे
निपटने के लिए भारतीय सेना की एक महत्वपूर्ण यूनिट ‘प्रथम पैरा स्पेशल
फोर्सेस’ को इनके कैम्प नष्ट करने तथा इन क्षेत्रो में अमन चैन स्थापित करने का
निर्देश दिया | मेरे पति उन दिनों इस यूनिट के कमान अधिकारी का पदभार सम्भाले हुए
थे | बिना समय गँवाए इस पलटन की एक टुकड़ी को हवाई जहाजों द्वारा मणिपुर –नागालैंड
के क्षेत्र में उतार दिया गया |
जंगलों में छिपे
उग्रवादियों को ढूँढना और उनके कैम्प नष्ट करना दुरूह कार्य था | इस इलाके में
पहुँचते ही हमारी यूनिट की कमांडो टीम छोटी –छोटी टुकड़ियों में विभाजित कर दी गई
थी | किसी टुकड़ी को हैलीकॉप्टर की सहयता से जंगलों में उतारा जाता था और कोई टुकड़ी
पैदल चलते हुए छिपे इन उग्रवादियों को नष्ट करने में लगी रहती थी | ऐसे
दुर्गम क्षेत्र में भी हमारे बहादुर कमांडो सैनिक बड़ी मात्रा में उग्रवादियों के
अस्त्र-शस्त्र और जान को हानि पहुँचाने में सफल हुए | इस अभियान में सैनिकों को कई
बार अपने मुख्य कैम्प से दूर - सुदूर जंगलों में रैन बसेरा करना पड़ता था |
एक बार भारत और म्यांमार के सीमा क्षेत्र में
शत्रु की टोह लेते-लेते रात हो गई और हमारे सैनिकों ने एक पहाड़ी टीले पर अपना
विश्राम स्थल बनाने का निश्चय लिया | इस के लिए सैनिकों की इस टुकड़ी ने उस जगह पर
मोर्चे खोदने आरम्भ किये | ज़मीन खोदते –खोदते उन्हें लगा कि टीले के एक ऊँचे स्थान पर मिट्टी
में कुछ धातु की चीज़ें दबी हुई हैं | सैनिकों की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने और गहरा
खोदना शुरू किया | खुदाई करते करते उन्हें वहाँ दबी दो हैलमेट मिली | कुछ अधिक
गहरा खोदने पर जंग लगी दो रायफलें और कुछ अस्थि अवशेष भी मिले | सैनिक अचम्भे में
थे कि यह किसके हथियार हैं और किसके अस्थि अवशेष | सैनिकों ने रेडियो सेट के द्वारा बेस कैम्प में
इन दबे हुए हथियारों और अस्थि अवशेषों के मिलने की सूचना दी | चूँकि रात बहुत अंधियारी
थी और राइफलों पर इतना जंग लग चुका था कि इनकी पहचान असम्भव थी|
अगली
सुबह इन हथियारों और दोनों हेलमेट को बेस कैम्प तक पहुँच दिया गया |उनकी सफाई के
बाद जब उनका जंग हटाया गया तो सेना अधिकारियों ने देखा कि उन पर जापानी भाषा में
कुछ लिखा था | बहुत सोच –विचार के बाद ऐसा अनुमान लगाया गया कि द्वितीय विश्व
युद्ध के समय कोई दो जापानी सैनिक इस मोर्चे पर हुई शत्रु की बमबारी में मारे गए होंगे
और वर्षों तक इसी में दबे रह गए होंगे| और ये अस्थि अवशेष भी उन्हीं गुमनाम
सैनिकों के ही थे |
सैनिक धर्म के
अनुसार मृत सैनिक चाहे किसी पक्ष का हो, किसी देश का हो उसका अंतिम संस्कार पूरी सैनिक रीति के अनुसार
किया जाता है | हमारी यूनिट के अधिकारियों ने भी इन अज्ञात जापानी सैनिकों का वहीं
पर अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया| यूनिट के धर्म गुरू की सहायता से उन गुमनाम सैनिकों
को वहीं पहाड़ी के टीले पर दफनाया गया जहाँ वर्षों पहले विदेशी धरती पर उन्होंने
अंतिम साँसें ली होंगी| उनकी हेलमेट को भी उनके अवशेषों के साथ वहीं पर दबा दिया
और उस जगह एक चिन्ह लगाया—‘विश्व युद्ध में शहीद हुए दो गुमनाम जापानी सैनिकों
का स्मृति स्थल |’ उनके हथियारों की सफाई के बाद उन्हें यूनिट में स्मृति
चिह्न के रूप में रखा गया |
आज कश्मीर में हो
रहे आतंकी हमलों की, उरी क्षेत्र में भारतीय सैनिकों के जीवित जलाए जाने की या
कश्मीर में सुरक्षा बलों पर वहाँ के निवासियों द्वारा पत्थर फेंकने की तस्वीरें
देखती हूँ मन बहुत क्षुब्ध होता है | आज बरबस मुझे लगभग ३३ वर्ष पुरानी यह घटना
याद आ रही है जो मेरे पति ने नागालैंड – मणिपुर में किए गए हमारे सैनिकों के इस
महत्वपूर्ण अभियान की तस्वीरें दिखाते हुए सुनाई थी |
इसमें कोई दो राय नहीं कि सैनिक केवल घातक
प्रहार करने के लिए ही प्रशिक्षित नहीं होते | निष्काम भाव से राष्ट्र रक्षा के
संकल्प साथ-साथ मानव धर्म और मानवता की सेवा का भाव उनके कर्म और आचरण में सदैव
विद्यमान रहता है |
शशि पाधा
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