बुधवार, 14 सितंबर 2016

एक हाइबन -----

-अमूल्य उपहार
शशि पाधा
वो नन्हें-नन्हें पाँव बढ़ाता, धीमे-धीमे चल रहा था । उसके होठों की मुस्कान एवं आँखों की चमक में कुछ रहस्य छिपा था ।अब वो थोड़ा पास आ गया था । मैंने देखा कि उसके नन्हें-नन्हें,कोमल हाथों में तीन शाखों वाली कुछ लंबी सी दूर्वा (हरी घास) धीमे-धीमे डोल रही थी ।
मैं उसे कुछ दूर से बड़ी उत्सुकता से देख रही थी और सोच रही थी कि वो उस टहनीनुमा घास को लेकर कहाँ जा रहा था । अरे, वो तो मेरी ओर ही आ रहा था । अपने दायें हाथ में घास की उस छोटी -सी दूर्वा को उठाकर वो ऐसे चल रहा था ,मानों सुमेरु पर्वत का भार वहन कर रहा हो ।
मेरे पास आते ही उसकी आँखों की चमक चौगुनी हो गई और मुस्कान उसके कोमल होठों से उसके कानों तक एकरस हो गई । मैं भी चुपचाप उसे देख रही थी कि आखिर वो क्या करने जा रहा है, कहाँ जा रहा है ।
मेरे पास पहुँचते ही उसने मुस्काते हुए दूर्वा को मेरी और बढ़ाया और कहा-“दादी, आपके लिए फूल !”
‘वो’ मेरा पौने तीन वर्ष का पोता ‘शिवी’ है और उस अमोल उपहार को पाकर गद्गद होने वाली उसकी दादी मैं , आपकी दोस्त |
निर्मल मन
अमूल्य उपहार
भीगे नयन ।
इस रचना को आप नीचे दिए गए लिंक पर भी पढ़ सकते हैं | आभार सम्पादक द्वय |
शशि पाधा
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