रविवार, 25 सितंबर 2016

भली थी

इक लड़की
कितनी 
भली थी
नाज़ बिछौने
पली थी
माँ अँगना में खेलती
जूही की
कली थी
पिता हथेली पे रखी  
 गुड़-मिश्री
डली थी
अल्हड़ हिरना झूमती
थोड़ी सी
पगली थी
भावी की गलियों में
स्वप्न संजोए
चली थी
ब्याही तो बेगाने घर
धू-धू कर
जली थी
बस इतना ही सुना कहीं  
चंगी थी
भली थी !!!!! 

शशि पाधा


2 टिप्‍पणियां:

  1. सुनने में आया कि धु धु करके जली ... !!! भली थी न

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    1. रश्मि जी सही कहा आपने | मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद |

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