आज मन अधीर है
आज मन अधीर है |
काँपती कोमल धरा अब
मन में गहरी पीर है |
दिशा- दिशा में हो रहा
शोर चीत्कार आज
आँख खोलूँ तो वहीं
संहार हाहाकार आज
शान्ति के देवता के
पाँव में जंजीर है |
हरित धरा का ओढ़नी
रक्त रंजित हो गई
उठ रहा धुआं कहीं
माँग सूनी हो गई
बह रहा हर आँख से
वेदना का नीर है |
खिन्न विश्वास आज
छलकपट के दाँव से
इंसानियत दब रही
आसुरों के पाँव से
मातृभूमि के ह्रदय
बिंध गया इक तीर है
दिन नहीं रहे कोई
बात या संवाद के
प्रहार ही लक्ष्य और
शस्त्र हर हाथ में
शत्रु नाश जो करे
आज वही वीर है |
आज मन अधीर है !!!!!
शशि पाधा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें