अनामिका
नील गगन की नील मणि सी
ऊषा की अरुणाई सीनील गगन की नील मणि सी
संध्या के श्यामल आंचल सी
सावन की पुरवाई सी
दर्पण देख सके न रूप
थोड़ी छाया थोड़ी धूप
मेरी तो पहचान यही है
और मेरा कोई नाम नहीं है ।
रेखाओ से घिरी नहीं मैं
न कोई सीमा न कोई बाधा
आकारों में बंधी नहीं मैं
सूर्य -चाँद यूँ आधा -आधा
खुशबू के संग उड़ती फिरती
कोई मुझको रोक न पाए
नदिया की धारा संग बहती
कोई मुझको बाँध न पाए
जहाँ चलूँ मैं , पंथ वही है
मेरी तो पहचान यही है ।
और मेरा कोई नाम नहीं है ।
नीले अम्बर के आँगन में
पंख बिना उड जाऊं मैं
इन्द्र धनु की बाँध के डोरी
बदली में मिल जाऊँ मैं
पवन जो छेड़े राग रागिनी
मन के तार बजाऊँ मैं
मन की भाषा पढ़ ले कोई
नि:स्वर गीत सुनाऊँ मैं
जो भी गाऊँ राग वही है
थोड़ी सी पहचान यही है।
और मेरा कोई नाम नहीं है ।
पर्वत झरने भाई बाँधव
नदिया बगिया सखि सहेली
दूर क्षितिज है घर की देहरी्
रूप मेरा अनबूझ पहेली
रेत कणों का शीत बिछौना
शशिकिरणों की ओढ़ूँ चादर
चंचल लहरें प्राण सपंदन
विचरण को है गहरा सागर
जहाँ भी जाऊँ नीड़ वही है
बस मेरी पहचान यही है
और मेरा कोई नाम नहीं है ।
शशि पाधा --कविता संग्रह "मानस मंथन से "
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...............................
जवाब देंहटाएंरूप मेरा अनबूझ पहेली...
जवाब देंहटाएंजहाँ भी जाऊँ नीड़ वही है
बहुत अच्छी रचना, पूरी रचना को गाकर पढ़ने से खुद को रोक नहीं सका। बहुत दिनों बाद कोई नाज़ुक सी ...रहस्य की ओर इंगित करती रचना पढ़ने को मिली। ब्लॉग बुलेटिन को धन्यवाद ..यहाँ तक पहुँचाने के लिये।
बहुत खूबसरत गीत
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