जिज्ञासा
क्षितिज के उस पार क्या है
जानने की चाह है
अम्बर का विस्तार क्या है
जानने की चाह है ।
रोज सुबह प्राची का सूरज
किरण -जाल बिछाए,
शाम ढले चुपचाप अकेला
सागर में छिप जाए
सागर से अपार क्या है?
जानने की चाह है ।
पंख पसारे उड़ते पंछीं
दिशा-दिशा मंडराएँ
किस अनन्त को ढूँढ़े फिरते
धरती पर न आएँ
अनन्त का विस्तार क्या है?
जानने कि चाह है?
हंसती- गाती आती मधु ऋतु
शाख-शाख हरियाए
क्यों आता पतझड़ निर्मोही
पात-पात मुरझाए
मधुबन का शृंगार क्या है?
जानने की चाह है ।
वीणा की तारों में झंकृत
सात सुरों के गान मिले
बगिया के फूलों के रंग में
सुख सपनों के प्राण छिपे
सपनों का संसार क्या है ?
जानने की चाह है ।
कोई न आया इस जगति में
अजर -अमर वरदान लिए
कर्मों की गठरी धर सर पर
जीवन के दिन चार जिए
मुक्ति का आधार क्या है ?
जानने की चाह है ।
शशि पाधा
चलूँ अनन्त की ओर
चलूँ अनन्त की ओर ।
विह्वल,व्याकुल तन मन मोरा
ढूँढे कोई ठौर ।
बाँच लिये सुख- दुख के अक्षर
नियति की स्याही का लेखा
जानूँ मैं उस पार तो होगी
राग-विराग की सन्धि रेखा
राग-विराग की सन्धि रेखा
कोई अनादि, कोई दिगन्त, शून्य का कोई छोर
ढूँढ रही वो ठौर ।
पंछी सा मन चहुँदिश उड़ता
दिशा बोध कराए कौन ?
मोह बन्धन के खोल कपाट
पार क्षितिज ले जाए कौन ?
चिर-चिरन्तन की अँगुली से
बाँधूं जीवन डोर, ले जाए उस ओर ।
ऐसा कोई ठौर ।
तोड़ूँ अब प्राचीर देह की
कर लूंगी चिरवास वहां
सत -असत का भ्रम न कोई
प्राँजल पूर्ण प्रकाश जहां
आनन्दमयी हर सन्ध्या होगी ,ज्योतिर्मय हर भोर ।
ढूँढूं वो ही ठौर ।
शशि पाधा
रोज सुबह प्राची का सूरज
जवाब देंहटाएंकिरण -जाल बिछाए,
शाम ढले चुपचाप अकेला
सागर में छिप जाए
हार्दिक शुभकामनायें